Saturday, April 27, 2024
जब गुजरता हूं खुद किसी भयावह स्थिति से, तो सोचता हूं अक्सर उसकी वजह  मैं। चाहता हूं मिटा दूं उस वजह को ही, पर लौट आता हूं अक्सर उसी जगह मैं। गुजरा हूं सिर्फ एक साधारण स्थिति से ही, परिस्थितियां इससे भी भयावह होती...
भोग विलासी, अत्याचारी, चाहे राजा हो दुर्व्यव्हारी। यशोगीत वो गाते थे, दिन को कह दे रात अगर वो , तो रात ही बताते थे। ये तो उनका काम था,  इसी से चुल्हा जलता था। क्यों ना करते जी हज़ूरी,  परिवार इसी से पलता था।  उनके तो कई कारण...
कविता - क्या तब? तप्त अग्नि में जलकर राख हो जाऊंगा। एक दिन मिट्टी में मिलकर खाक हो जाऊंगा। तब मिट्टी को रौंदकर क्या मुझे  याद करोगे? झूठे ख्वाबों की शायरी से क्या मेरा इंतजार करोगे? करना है इश्क़ तो अब कर सनम। लगा सीने से तस्वीर को क्या तब याद...
कविता – बात कहीं और ले गया बदली थी सरकार हमने क्या जोश था आख़िर बदलाव आया था, मन में एक भाव आया था की अब देश बदलेगा ! नहीं मरेगा किसान, नहीं होगा सीमा पर  बलिदान ! कला धन आएगा और गरीब भी खुशहाल हो जायेगा, भ्रष्टाचार खत्म...
समाज के हर स्थान में, हर ऐश में आराम में, हर अच्छे बड़े काम में, मंदिरों के अनुष्ठान में,  हर नृत्य में हर गान में,  कुएं में, तालाब में, पानी के हर स्थान में,  अच्छे परिधान में, सामाजिक खानपान...
कविता-आस्तिक या नास्तिक? उसने पूछा कि तुम आस्तिक हो या नास्तिक? मैं कुछ ठिठका,क्योंकि इस बारे में सोचा न था अभी तक। सोच के मैं बोला, इस बारे में मेरा जवाब नहीं है निश्चित । क्या है मेरी मनोदशा वास्तविक? मैं आखिर आस्तिक हुं...
“कुछ तो करना होगा” हो रहा है आज जो दूसरों के साथ, कल तेरे साथ भी हो सकता है, तू  जो बना है आज तमाशबीन कल तमाशा तेरे साथ भी हो सकता है। क्यों पड़ूं मैं इन झमेलों में,इस सोच से तुझे...
बाल कविता - कुमारी संजना की कविता गुरु हमें शिक्षा सिखाते, जिदंगी मे आगे बढ़ने  की राह दिखाते। गुरु हमें संस्कार सिखाते, अच्छे कर्मों को करने की राह दिखाते। गुरु हमे सच बोलना सिखाते, झूठ न बोलने की राह दिखाते। गुरु हमें देश मे ऊँचा...
यार विवेक मैं सोच रहा हूँ क्यों ना इस बार चुनाव में अपनी गाय को खड़ा कर दूं। मैं खुद तो कभी चुनाव जीत नहीं सकता ! गाय को खड़ा किया तो बाकी सारे उम्मीदवार अपना अपना वोट भी...
??????? बस एक नजर देखने भर से तुम जैसे ह्रदय मे उतर आती हो, हज़ारों परियां सुन्दरता का शगुन लेकर जैसे आँखों मे ठहर जाती हो, तुम्हारी हलचल को ही तो सहेजता रहता हूँ हरपल तुमसे निकली , तुम ही तो, मेरी कविता हो......! मुझे देखकर तुम कुछ कहती भी नहीं लेकिन...
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