Thursday, April 25, 2024
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हिमाचली साहित्य

रेंगने से भागने तक जीते नहीं थे,काटते थे जिंदगी |  घिसटते थे,खिसकते थे,रेंगते थे | ऐसा न था कि सभी रेंगते ही थे | देखने में थे हू ब हू ही, पर कुछ खड़े होते, चलते और दौड़ते भी थे | पर कभी सोचा ही...
  नफ़रत के बीज   शहरों से दूर, आधुनिकता से परे, भौतिकता के पार, दूर सुदूर क्षेत्र में प्रकृति की गोद में बसा एक गाँव। गांव के लोगों का अपना ही था काम। खेती-बाड़ी और पशुओं को चरा लेते थे। खुशी से जीवन...
सही गलत किसी बात से व्यथित मन,   व्यथित मन ने लिया ठान, क्या सही है क्या है गलत? अब तो वह यह लेगा जान। विचारों के विमान संग,  उड़ता फिर रहा था मन।  फिर दृश्य एक देखकर,  मन गया वही पर थम ।  ठीक उसी स्थान पर, खत्म हो...
हो तपती गर्मी या हो सर्दी, उगाई फ़सलें तूने सदियों, हर मौसम की मार में।  तू कौन है?  जो आ खड़ा है, महल के द्वार में ।   चुप ही था तु तो सदा, सर झुका रहता था तेरा, हर दुख में हर हार में।  ऊँचा...
भोग विलासी, अत्याचारी, चाहे राजा हो दुर्व्यव्हारी। यशोगीत वो गाते थे, दिन को कह दे रात अगर वो , तो रात ही बताते थे। ये तो उनका काम था,  इसी से चुल्हा जलता था। क्यों ना करते जी हज़ूरी,  परिवार इसी से पलता था।  उनके तो कई कारण...

यूँ ही

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ईश्वर हमारी कृति है,  मंदिर में प्रवेश तुम्हारी गुस्ताखी है । आस्था, आशीर्वाद, पूजा हमारे हिस्से,  तुम्हारे लिए ईश्वर का डर ही काफी है । रोटी - बेटी की बात तो सोचो ही मत तुम,  हमारे रास्ते, घर, कुएँ को छुने की सोचना ही...
कविता - तृतीय विश्व युद्ध विकास के पहिए शहरों की ढेर सारी आबादी को वापिस छोड़ आए हैं गांव ये कहकर, कि यही है सबसे सुरक्षित ठिकाना अनिश्चितकाल के लिए गांव की प्रतिष्ठा में लग गए हैं चार चांद! जब, एक वायरस लील रहा है कई जिंदगियों को ऐसे...
 1. दर्द दर्द को समझने के लिए पहले मैंने बाजू में चीरा लगाया, फिर भी मुझे, वह दर्द महसूस नहीं हुआ। फिर मैंने ज़ख्म में नमक मिला लिया, पर फिर भी मुझे, उतना दर्द नहीं हुआ। मैं समझ नहीं पा रहा था आखिर क्यों... वह दर्द खुद को यातना देने...
1. बाल कविता आओ हम स्कूल चले नव भारत का निर्माण करें। छूट गया है जो बंधन भव का आओ मिलकर उसको पार करें, आओ हम स्कूल चले ..... जाकर स्कूल हम गुरुओं का मान करें बड़े बूढ़ों का कभी न हम अपमान करें, आओ हम स्कूल चले....... जाकर स्कूल हम दिल लगाकर...
कविता - हिंदी हिंदी भाषा की शान है, हिंदी को देते हम सम्मान हैं। हिंदी हमें सब कुछ सिखाती है। व्याकरण का ज्ञान करवाती है। हिंदी भारतीयों की भाषा है इसमें हमें न कोई निराशा है। हिंदी सबको बोलनी आती है, सबके दिलों को भांति है । देश की माथे की बिंदी है, राजभाषा हिंदी है। खुशबू नौवीं...
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