आलेख - दूषित राजनीति दूषित लोग
आज हम भारत की राजनीति की बात करें तो वह पूरी तरह दूषित हो चुकी है।इसके लिए हम किस को जिम्मेवार ठहरा है।कुछ समझ नहीं आता मगर वास्तव में हम विचार करें तो दूषित...
1. नया काम नया नाम
खुद को खुदी से ही अलग कर रहा हूं
जीने के लिए एक नया काम कर रहा हूं।
मौकापरस्त ही मिले लोग इस शहर में
तभी रास्ता श्मशान का साफ कर रहा हूं।
बिना बीज के ही उग आते...
कविता – अपनी अपनी शाम
१. बेनाम सी जिन्दगी जीने लगे है,
हर शाम अब पीने लगे है।
नाकामी का ठीकरा,
रोज भरता है,
रोज टूटता है।
फिर दिल में दर्द फूटता है,
दर्द...
1. खूबसूरत लम्हो में
लिखना चाहती थी ,
हर रोज़ इक कविता ....
मैं हर रोज़;
इक कविता तेरे लिए
इक कविता, तेरे लिए
ऐसा वो कल आता,...
मगर, दफन सी
हो गई
उम्मीद ।
अरमान, कुछ तेरे
कुछ मेरे
बीते कल की बातों में
छोड़ आए
जिनको उन खूबसूरत
लम्हों में
जहाँ मिले थे
हम...
एक बस सफर के दौरान बस में लिखे वाक्य “सोचो,साथ क्या जाएगा”को पढ़ कर इस कविता का विचार मन में आया था।
सोच,साथ क्या जाएगा?
“अनमोल बड़ी है ये जिंदगी,खुशी से इसे बीता ले तू।
बड़े बड़े हैं सपने तेरे,हकीकत इन्हें...
नफ़रत के बीज
शहरों से दूर,
आधुनिकता से परे,
भौतिकता के पार,
दूर सुदूर क्षेत्र में प्रकृति की गोद में बसा एक गाँव।
गांव के लोगों का अपना ही था काम।
खेती-बाड़ी और पशुओं को चरा लेते थे।
खुशी से जीवन...
कविता- गुलाम आज़ादी
मुबारक हो,
मुबारक हो
आज़ाद हिंद के
गुलाम नागरिकों को
आज़ादी मुबारक हो।
गुलाम हो,
गुलाम हो
आज भी तुम
अपने कामुक विचारों के
गुलाम हो।
शिकार हो,
शिकार हो
आज भी तुम
गली चौराहों में
घूमती फिरती
अपनी गंदी नज़र
का शिकार हो।
बेहाल हो,
बेहाल हो
आज भी तुम
जाति बंधन के
कटु नियमों से
बेहाल हो।
गुलाम...
अलविदा मानसून
तुम इस बार कुछ उखड़े उखड़े से रहे! महज़ एक दो बार ही जम कर बरस सके, बाकी सिर्फ आसमान से ही ताकते रहे और हँसते रहे इंसानों के जंगल राज पर! जो रात दिन लगा हुआ है...
कविता - दो चेहरे
क्या तुमने कभी देखे हैं दो चेहरे वाले लोग ?
गर नहीं देखे तो अपने अंदर झांक ले ।
पूछ ले अपने अंतर्मन से, अंतर्रात्मा को ताक ले ।
क्या तेरे दो चेहरे नहीं ?
एक चेहरा जो दिखता है...
जब गुजरता हूं खुद किसी भयावह स्थिति से,
तो सोचता हूं अक्सर उसकी वजह मैं।
चाहता हूं मिटा दूं उस वजह को ही,
पर लौट आता हूं अक्सर उसी जगह मैं।
गुजरा हूं सिर्फ एक साधारण स्थिति से ही,
परिस्थितियां इससे भी भयावह होती...