कविता-आस्तिक या नास्तिक?

उसने पूछा कि तुम आस्तिक हो या नास्तिक?
मैं कुछ ठिठका,क्योंकि इस बारे में सोचा न था अभी तक।
सोच के मैं बोला, इस बारे में मेरा जवाब नहीं है निश्चित ।
क्या है मेरी मनोदशा वास्तविक?
मैं आखिर आस्तिक हुं या नास्तिक?

हां, हां मैं एक आस्तिक हुं।
ईश्वर सभी जगह विद्यमान है।
मेरे सब अच्छे बुरे कर्मों का उसे ज्ञान है।
दुनिया में नेकी ,सच्चाई, दया और ईन्सानियत है,
ये सब उस ईश्वर की ही पहचान है।
जो मुझे,मेरे अंदर से ही रोकता है गलत करने से,
वो ईश्वर ही है,जो मुझ में विद्यमान है।
हां,इस दुनिया में हर जगह  भगवान है,
यही मेरी सोच है वास्तविक ।
हां हां मैं हुं एक  आस्तिक॥

वो बोला ,ठीक बात है।
अब तेरी स्थिति बिल्कुल साफ है।
अब मैं इस बात को आगे बढा देता हुं ।
तुम्हारा नाम आस्तिकों की सुचि में चढा देता हुं।
‘जरा रूको ’ मैं बोला ,मेरी बात अभी अधूरी है।
कुछ बात रह गई है,जो करनी बडी जरूरी है।

जिस अल्लाह भगवान के नाम पे दंगे होते हैं,
मैं उस ईश्वर को नहीं जानता।
जिसके मंदिर में होता है इन्सान इन्सान में भेदभाव,
उसे मैं ईश्वर नहीं मानता।
जहां एक ओर गरीबी और भूखमरी है,
दूसरी ओर मंदिरो में लाखों का चढावा चढता है।
इस बात को देख,मुझे आज ये कहना पडता है।
कटते हों जहां बेजुबान जानवर बलि के नाम पे,
गर इस तरह का ईश्वर सच्चा है,
तो मेरा नास्तिक कहलाना ही अच्छा है।
मेरा नास्तिक कहलाना ही अच्छा है॥

– राजेंद्र कुमार 

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