Thursday, March 28, 2024
रेंगने से भागने तक जीते नहीं थे,काटते थे जिंदगी |  घिसटते थे,खिसकते थे,रेंगते थे | ऐसा न था कि सभी रेंगते ही थे | देखने में थे हू ब हू ही, पर कुछ खड़े होते, चलते और दौड़ते भी थे | पर कभी सोचा ही...
1. इक लौ अभी तक ज़िंदा है अभी कोई नहीं है ख़ुशी यहाँ, बंजर खेत है,उजाड़ बस्ती है। इक लौ अभी ज़िंदा है जो इक निग़ाह को तरसती है। इक ख़ौफ़ सा अंदर बाकी है इक आंख रात दिन जगती है, खौफ़जदा है वो हर इक...
कविता - बहते हुए तूफ़ान बहते हुए तूफान में मैं भी बहता रहा, कभी तूफान बन कर कभी दरिया की नाव बनकर। लोग सोचते रहे, मैं डूब गया। किसी गुमनाम तैराक की तरह। पर स्थिर रहा मैं, किसी अडिंग चट्टान की तरह। टकराता रहा मैं भी, तूफानी दरिया के पानी की...
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