नफ़रत के बीज
शहरों से दूर,
आधुनिकता से परे,
भौतिकता के पार,
दूर सुदूर क्षेत्र में प्रकृति की गोद में बसा एक गाँव।
गांव के लोगों का अपना ही था काम।
खेती-बाड़ी और पशुओं को चरा लेते थे।
खुशी से जीवन...
1. बाल कविता
आओ हम स्कूल चले
नव भारत का निर्माण करें।
छूट गया है जो
बंधन भव का
आओ मिलकर उसको
पार करें,
आओ हम स्कूल चले .....
जाकर स्कूल हम
गुरुओं का मान करें
बड़े बूढ़ों का कभी न
हम अपमान करें,
आओ हम स्कूल चले.......
जाकर स्कूल हम
दिल लगाकर...
रेंगने से भागने तक
जीते नहीं थे,काटते थे जिंदगी |
घिसटते थे,खिसकते थे,रेंगते थे |
ऐसा न था कि सभी रेंगते ही थे |
देखने में थे हू ब हू ही,
पर कुछ खड़े होते, चलते और दौड़ते भी थे |
पर कभी सोचा ही...
कविता- गुलाम आज़ादी
मुबारक हो,
मुबारक हो
आज़ाद हिंद के
गुलाम नागरिकों को
आज़ादी मुबारक हो।
गुलाम हो,
गुलाम हो
आज भी तुम
अपने कामुक विचारों के
गुलाम हो।
शिकार हो,
शिकार हो
आज भी तुम
गली चौराहों में
घूमती फिरती
अपनी गंदी नज़र
का शिकार हो।
बेहाल हो,
बेहाल हो
आज भी तुम
जाति बंधन के
कटु नियमों से
बेहाल हो।
गुलाम...
कविता - दो चेहरे
क्या तुमने कभी देखे हैं दो चेहरे वाले लोग ?
गर नहीं देखे तो अपने अंदर झांक ले ।
पूछ ले अपने अंतर्मन से, अंतर्रात्मा को ताक ले ।
क्या तेरे दो चेहरे नहीं ?
एक चेहरा जो दिखता है...
1. इक लौ अभी तक ज़िंदा है
अभी कोई नहीं है ख़ुशी यहाँ,
बंजर खेत है,उजाड़ बस्ती है।
इक लौ अभी ज़िंदा है
जो इक निग़ाह को तरसती है।
इक ख़ौफ़ सा अंदर बाकी है
इक आंख रात दिन जगती है,
खौफ़जदा है वो हर इक...
कविता - बहते हुए तूफ़ान
बहते हुए तूफान में
मैं भी बहता रहा,
कभी तूफान बन कर
कभी दरिया की नाव बनकर।
लोग सोचते रहे,
मैं डूब गया।
किसी गुमनाम तैराक की तरह।
पर स्थिर रहा मैं,
किसी अडिंग चट्टान की तरह।
टकराता रहा मैं भी,
तूफानी दरिया के
पानी की...
कविता - नन्ही परी
हर रोज की तरह आज भी हुई सुबह
आज था कुछ अलग होना इसका था ना मुझे पता
घर से स्कूल, स्कूल से घर, यही थी मेरी राह
यहीं कुछ ऐसा हुआ जिससे बदल गया जीवन सारा।।
क्या थी गलती...
समाज के हर स्थान में,
हर ऐश में आराम में,
हर अच्छे बड़े काम में,
मंदिरों के अनुष्ठान में,
हर नृत्य में हर गान में,
कुएं में, तालाब में, पानी के हर स्थान में,
अच्छे परिधान में, सामाजिक खानपान...
कविता – नए प्रतिबिम्ब
खो गए हैं
वक्त के आईने से,
जो सपने
संजोए थे मैंने,
समेटने की,
कि थी कोशिश बहुत,
पर बिखर गए
सैलाब बन कर।
धूमिल होते आईने पर
उभर रहे हैं,
प्रतिबिम्ब नए नए !
मिलते नहीं निशाँ
साफ़ करने पर भी,
छिप गए हैं धूल में,
करवट बदल कहीं………
रह...