Home हिमाचली साहित्य वापिस (कविता) हिमाचली साहित्य वापिस (कविता) By super_RK - October 7, 2018 671 0 Facebook Twitter Pinterest WhatsApp जब गुजरता हूं खुद किसी भयावह स्थिति से, तो सोचता हूं अक्सर उसकी वजह मैं। चाहता हूं मिटा दूं उस वजह को ही, पर लौट आता हूं अक्सर उसी जगह मैं। गुजरा हूं सिर्फ एक साधारण स्थिति से ही, परिस्थितियां इससे भी भयावह होती हैं। कैसे सहते होंगे लोग दर्द उन परिस्थितियों का, जिन की दस्तक मात्र से दिल में दहशत होती है। डूबता चला जाता हूं विचारों के भंवर में इस तरह मैं, पर लौट आता हूं अक्सर उसी जगह मैं। कुछ बातें बदलने को, एक बड़ा कदम उठाना पड़ता है । समाज में परिवर्तन लाने को, तथाकथित समाज से टकराना पड़ता है । सोच समाज से खिलाफत की बातों को, जाता हूं अक्सर सहम मैं, विचारों से निकल कर, लौट आता हूं अक्सर उसी जगह मैं। जानता हूं लौट आना विचारों से “वापस उसी जगह” रास्ता बड़ा आसान है, पर यह भी जानता हूं कि यह मेरी कमजोरी की पहचान है। कभी बढूंगा मैं आगे समाज की कुरीतियों के खिलाफ, फिर हो जाऊंगा सजग मैं। नहीं लौटूंगा फिर “वापिस उसी जगह” मैं….वापिस उसी जगह मैं। – राजेंद्र कुमार RELATED ARTICLESMORE FROM AUTHOR सही गलत (कविता) महल के द्वार में । आपके क्या कारण हैं? LEAVE A REPLY Cancel reply Please enter your comment! Please enter your name here You have entered an incorrect email address! Please enter your email address here Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. 98FansLike3FollowersFollow Recent Posts राजीव डोगरा की कविता – दर्द मिटा दूँगा हिम वाणी - August 13, 2019 0 सांगला घाटी – प्राकृतिक सौंदर्य से सरावोर Balwant Neeb - June 10, 2018 0 राजीव डोगरा की कविता हिंदी हिंद की शान है हिम वाणी - September 13, 2019 0 कविता- “वक्त” super_RK - September 24, 2018 0 गुरूकुल बहुमुखी शिक्षा संस्था ने जाने माने कवि और चित्रकार कुँवर रविंदर को समर्पित... Balwant Neeb - June 21, 2018 0