एक तरफ बर्फ से ढके पत्थर के ऊंचे ऊंचे पर्वत तथा दूसरी तरफ देवदार के जंगलों से भरे सफेद पर्वत और बीच से नागिन सी बलखाती बास्पा नदी, नजारा कुछ ऐसा था कि मैं पलकें झपकाना ही भूल गया। सांगला में प्रवेश करते ही इन नजारों से जब नजर हटी तो नजर एक छोटी पहाडी पर बसे गांव पर अटक गई। गांव में घर बहूत नजदीक नजदीक सटे हुए थे जो दूर से ही आकर्षित कर रहे थे ।गांव का नाम है “कामरू” गांव के सबसे ऊंचे स्थान पर पहाड़ी की चोटी पर स्थित “कामरू किला”
दूर से ही दिख रहा था। उस दिन तो दूर से ही देख पाया लेकिन बाद में कामरू गांव तथा किला देखने का अवसर मिला।
सांगला से 1 कि०मी० की दूरी पर स्थित है कामरू गांव। जिसे स्थानीय भाषा में “मोने” कहा जाता है। गांव के प्रवेश द्वार तक सडक है। मुख्य द्वार पर एक भव्य गेट है जिस पर बनी नक्काशी को देखकर ही समझ आ जाता है कि ये बौद्ध धर्म से सम्बन्धित है। यहां से उपर सीढियां शुरू हो जाती है। रास्ता लकडी तथा स्लेट के मकानों के बीच से गुजरते हुए ऊपर की तरफ बढता जाता है। कामरू किले का रास्ता गांव के देवता बद्री विशाल जी के मंदिर से हो के जाता है। बद्री विशाल जी को भगवान विष्णु का अवतार मानते हैं। देवता का यह मंदिर 15वीं शताब्दी में तैयार किया गया था। तीन साल में एक बार देवता के रथ को स्नान करवाने हेतु उत्तराखण्ड के बद्रीनाथ ले जाया जाता है। उत्तराखंड से भी भक्तगण देवता का आशीर्वाद लेने के लिए यंहा आते हैं।मंदिर का द्वार लकडी से बना है, इस पर विभिन्न हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियों की नक्काशी की गई है। मंदिर की दीवारों पर भी लकडी की खुबसुरत नक्काशी का बेजोड नमूना देखने को मिलता है। साथ ही बौद्ध मंदिर भी स्थित है। यहां से होकर ही रास्ता कामरू किले के लिए जाता है। किले का द्वार भी नक्काशीदार लकडी से बना है। यहां से टोपी तथा कमरबंद (जिसे स्थानिय भषा में “गाची” कहा जाता है) पहनकर ही मंदिर में प्रवेश किया जा सकता है। अंदर जाते ही नजर पडती है प्राचीन भव्य कामरू किले पर। यहां से सांगला बेहद ही खुबसूरत तथा मनमोहक नजर आता है।
यह किला पत्थरों और लकड़ी से बना सात मंजिला भवन है, जिसमे हुई उच्च कोटी की निर्माण शैली देखते ही बनती है। किले में बहुत वर्ष पुर्व माता कामाख्या देवी जी की मूर्ति स्थापित की गई थी। माना जाता है कि ये मूर्ति असम से लाई गई थी। पर्यटकों का अंदर प्रवेश वर्जित होने के चलते अब श्रद्धालुओं को दर्शन हेतु माता कामाख्या की मूर्ति को किले के बाहर प्रांगण में ही बने मंदिर में स्थापित कर दिया गया है। किले का निर्माण ऐसे स्थान पर किया गया है कि यहां पहूंचने का केवल एक ही रास्ता है।सैनिक इस किले से दूर-दूर व चारों दिशाओं में अपने दुश्मनों पर पैनी निगाह रख सकते थे। कहा जाता है कि किले के साथ ही नीचे की ओर तीनमंजिला जेल थी, जहां उन अपराधियों को रखा जाता था जिन्होने बहुत ही बड़ा गुनाह किया होता था। इस जेल की सबसे ऊपरी मंजिल में एकमात्र दरवाजा है वह भी छोटा-सा। अन्य कोई खिड़की या दरवाजा इसमें नहीं है। स्थानीय लोगों के अनुसार किला लगभग 1000 वर्ष पुराना है लेकिन आज भी इस किले को देखकर इतिहास में इसके महत्व का अहसास हो जाता है।
कहा जाता है कि कुपा और सांगला गांव जो आज हैं वहां पहले एक बहुत बड़ी झील हुआ करती थी। देवता बैरिंगनाग, कमरुनाग और बद्रीविशाल जी ने झील को हटाने के लिए योजना बनाई। देवता बैरिंगनाग ने सांप और बद्रीविशाल ने चूहे का रूप बनाकर झील में मिलजुलकर ढेरों सुराख करके झील को तबाह कर दिया। झील के हटने से यह क्षेत्र समतल हो गया। फिर एक समझौते के अनुसार देवता बेरिंग नाग सांगला , देव बद्रीविशाल कामरु गांव और कमरुनाग जो पानी में रहना पसंद करते थे जिला मण्डी में रोहाण्डा के समीप स्थापित हो गये। यह स्थान आज कमरुघाटी के नाम से विख्यात है।
कामरू बुशैहर रियासत की राजधानी थी। जिसके संस्थापक भगवान श्री कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न को माना जाता है। कामरु किला रामपुर बुशहर रियासत का अभिन्न अंग था। बुशहर रियासत के हर राजा का राज्याभिषेक इसी किले में किया जाता था। प्रद्युमन से आरम्भ हुई इस वंशावली की 123 पीढी हिमाचल के पुर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की है।
कामरू किला ऐतिहासिक महत्वता के साथ साथ लोगों की आस्था का भी अखण्ड प्रतीक है। यह किन्नौर के पर्यटन मानचित्र में भी अत्याधिक महत्व रखता है, सैकडों पर्यटक प्रतिवर्ष यहां आते हैं। अगर मैं अपनी बात करूं तो मैं अब तक 4 बार यहां आ चुका हुं।अगर आप भी किन्नौर घुमने के इच्छुक हैं तो कामरू किला बेशक आपकी यात्रा को यादगार बनाएगा।
– राजेंद्र कुमार
कामरू किला की कुछ तस्वीरें –