बारसेला (सती स्तंभ) मण्डी, हिमाचल प्रदेश।

 

भारतवर्ष की संस्कृति बेहद प्राचीन एवं समृद्ध है लेकिन कुछ कुरितियां ऐसी रही हैं जो हमारी संस्कृति की महानता के दावे पर सवालिया निशान लगाती रही हैं।इनमें से कुछ समय के साथ खत्म हो गई क्यों कि उन कुरितियों की पीड़ा सभी वर्गों को झेलनी पड़ी। और कुछ अभी भी मुंह बाये खड़ी है, शायद उनके खात्मे में अभी और दशक देखने पड़े क्यों कि इनकी तपिश विशेष वर्ग को ही झेलनी पड़ती है।

आज मैं बात करने जा रहा हुं ऐसे स्मारक की जो भारतीय संस्कृति की समाप्त हो चुकी एक ऐसी ही अमानवीय सती प्रथा का गवाह हैं। यह अमानवीय प्रथा कश्मीर से कन्याकुमारी तक व्यापक रूप में फैली हुई थी और हिमाचल प्रदेश भी इससे अछूता नहीं था। राज्य के मण्डी नगर में कुछ सती-स्तम्भ हैं जिन्हें मंडयाली बोली में “बारसेला” के नाम से जाना जाता है। जिन पर मृत राजाओं के नामों और उनकी चिता पर सती होने वाली रानियों,दासियों की संख्याऔर मृत्यु तिथि टांकरी लिपी में दर्ज की गई है। ऐसे स्तंभ मण्डी शहर में सुकेत पुल के समीप स्थित हैं तथा इनमें मरने वाले राजा के साथ सती होने वाली रानियों, ख्वासों और दासियों के चित्र तक बनाए गए हैं।ये स्तंभ अलग अलग आकार के हैं इनकी ऊंचाई एक फीट से सात फीट तक की है।ये स्तंभ 1662 से 1838 के मध्य काल के हैं। अपितु तो सती प्रथा बहुत प्राचीन है लेकिन इस स्मारक के अनुसार राजा सूरजसेन की रानी सर्वप्रथम सती हुई थी।1679 ई० में राजा श्याम सेन की मृत्यु पर उनके साथ 5 रानियां,2 ख्वासों 87 दासियों को जिंदा जला दिया गया था।और इन के एतिहासिक महत्व को देखते हुए इन्हें भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय महत्व के स्मारक घोषित किया गया है। अठारह सौ पैंतीस ई. में विदेशी पर्यटक जी. वीजने मण्डी आया था और उसने एक स्त्री को अपने पति की चिता पर सती होते हुए देखा था। उसका कहना है कि मृत पति की विधवा लड़खड़ाते हुए चल रही थी और उसे रंग-बिरंगें वस्त्रों से सजाया गया था तथा उसकी चाल से ऐसा लगता था कि उसे अफीम या भांग जैसा नशा करवाया गया था।

राजा या ऐसे महत्वपूर्ण व्यक्ति की मौत हो जाने पर उसकी पत्नियों के अलावा उससे जुड़े वे खास मर्द भी सती की बलि चढ़ जाते थे, जो मरने वाले व्यक्ति के बहुत करीबी होते थे।यह स्मारक मण्डी शहर में मंगवाई (रामनगर) में स्थित है जो बस स्टैंड से 500 मीटर की दूरी पर स्थित है।कभी मण्डी आयें तो इस एतिहासिक धरोहर को देखना न भूलें।

इसी आशा के साथ इस लेख को खत्म कर रहा हूँ कि इस कुरीति की तरह अन्य कुरीतियाँ भी जल्द ही समाप्त होकर अतीत के आगोश में दफन हो जाएं और भारतवर्ष फिर एक बार विश्वगुरु का गौरव हासिल करे।

-राजेन्द्र कुमार

कुछ तस्वीरें:-

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