Home हिमाचली साहित्य रेंगने से भागने तक हिमाचली साहित्य रेंगने से भागने तक By super_RK - February 25, 2023 22 0 Facebook Twitter Pinterest WhatsApp रेंगने से भागने तक जीते नहीं थे,काटते थे जिंदगी | घिसटते थे,खिसकते थे,रेंगते थे | ऐसा न था कि सभी रेंगते ही थे | देखने में थे हू ब हू ही, पर कुछ खड़े होते, चलते और दौड़ते भी थे | पर कभी सोचा ही नही वो क्यूँ हैं दौड़ते? और हम हैं बस रेंगते | कोई शिकायत भी न थी जिंदगी से, होती भी कैसे? कुछ सोचते तभी तो शिकायत करते | क्योंकर कुंद हो गई थी सोच ऐसे? सदियों से सिर्फ रेंग ही रहे थे ऐसे | चाहते न थे “चलने-वाले”, “रेंगने-वाले” भी चलें उनके जैसे | सदियों की निर्मम ताड़ना से, भय भयंकर भर दिया अंतर्मन में | अब रेंगने के सिवा, कोई सोच न बची उन सब के मन में | मान के रेंगने को मुक़द्दर अपना, न सोचा,न देखा चलने का सपना | वक्त गुज़रा,फिर फूटा अंकुर बंजर मन में, पर बहुत कठिन था उग पाना | भले परिस्थितियां थी विपरीत, पर उसने रुकना न जाना | वो लड़ा,वो उठा,वो चला | और खुद अपनी राह बनाई | तैरा धारा के विपरीत, रेंगा नहीं,दौड़ लगाई | चलना सिखाया,पथ दिखलाया, चलने का सबको हक़ दिलवाया | देख परिवर्तन व्यवस्था में, पहले से “चलने-वाले” बौखलाए | रौंदते थे जो अधिकार औरों के, उन्हें अपने अधिकार याद आये | चरणों से ही जन्म लिया, है स्थान तुम्हारा चरणों में | रेंगना ही है काम तुम्हारा, क्या रखा है चलनें में | सदियों से हम ही चलते आये हैं, चलने पर अधिकार हमारा है | इनका चलना बंद करो, ये तो शोषण हमारा है | देख के चलता “रेंगने-वालों” को, “चलने-वाले” जलने लगे | जलने वाले जलते रहे , “रेंगने-वाले” चलने लगे | “रेंगने-वाले” चलना सीखे, वो न सीखे,सिखाना | भूले “रेंगने-वालों” को, भूले उनको पथ दिखलाना | वो न सीखे दौड़ लगाना, वो तो सीखे भागना | भागना संघर्ष से, भागना जिम्मेदारियों से, भागना मुश्किलों से, और भागना दूर उनसे, जो अभी भी रेंग रहे हैं | वो सीखे भागना, क्योंकि वो मन से अभी भी रेंग रहे हैं | Super RK RELATED ARTICLESMORE FROM AUTHOR नफ़रत के बीज (कविता) सही गलत (कविता) महल के द्वार में । LEAVE A REPLY Cancel reply Please enter your comment! Please enter your name here You have entered an incorrect email address! Please enter your email address here Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ 102FansLike3FollowersFollow Recent Posts अलौकिक सुन्दरता का प्रतीक है पराशर झील Balwant Neeb - June 12, 2018 1 किन्नौर डायरी – छितकुल, भारत का अंतिम गांव super_RK - July 17, 2018 2 वापिस (कविता) super_RK - October 7, 2018 0 राजीव डोगरा की कविता – दर्द मिटा दूँगा हिम वाणी - August 13, 2019 0 शाम अजनबी – इक लौ अभी तक ज़िंदा है हिम वाणी - March 17, 2019 0