कविता – बहते हुए तूफ़ान
बहते हुए तूफान में
मैं भी बहता रहा,
कभी तूफान बन कर
कभी दरिया की नाव बनकर।
लोग सोचते रहे,
मैं डूब गया।
किसी गुमनाम तैराक की तरह।
पर स्थिर रहा मैं,
किसी अडिंग चट्टान की तरह।
टकराता रहा मैं भी,
तूफानी दरिया के
पानी की तरह।
कभी एक किनारे से
दूसरे किनारे।
कभी एक चट्टान से
दूसरी चट्टान से।
फिर भी
मैं बहता रहा।
किसी तूफानी जंजर की तरह
सब ग़म चीरते हुए।
राजीव डोगरा
(भाषा अध्यापक)
गवर्नमेंट हाई स्कूल,ठाकुरद्वारा, कांगड़ा हिमाचल प्रदेश।
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