कविता – नन्ही परी
हर रोज की तरह आज भी हुई सुबह
आज था कुछ अलग होना इसका था ना मुझे पता
घर से स्कूल, स्कूल से घर, यही थी मेरी राह
यहीं कुछ ऐसा हुआ जिससे बदल गया जीवन सारा।।
क्या थी गलती मेरी?
किस बात की मुझे सज़ा मिली
क्या था मैने बिगाड़ा तुम्हारा
खत्म हो गई जिंदगी हो गया अंधेरा
माँ क्या यह सभी के साथ होता है?
क्या यहाँ हर कोई ऐसे ही रोता है?
हाँ, तो क्या यह गलत नहीं?
तो बेचारे बेकसूर मासूम को मिलता इंसाफ क्यूँ नहीं?
जो बात थी दिल में वॊ दिल में रह गई।
एक जिंदगी मिली थी वो भी खत्म हो गयी
जहां सुख था वहां दुख मिला और
जहां दुख मिला वहाँ जीवन छिन गया
जो देखने वाला था उसने देखा ना था
जो सुनने वाला था उसने सुना ना था
जो होना ना था वही हुआ
पिसनेवाला पिसता रहा
पिटनेवाला पिटता रहा
दबने वाला दबता रहा
और इंसाफ वो तो गायब हो गया
पापा अब मैं चलती हूँ
आपने पीछे से रोना नहीं
माँ को अकेले छोड़ना नहीं
मैं चुप चाप चली जाऊँगी
माँ के आंसू देख ना पाऊँगी
अब आँगन में सन्नाटा हो जाएगा
छोटा भाई अकेला ही रह जाएगा
मेरा समान सम्भाल कर रखना
शायद अगला जीवन हो यहीं
शायद यहीं हो पलना
मालूम है आप लोग रह ना पाओगे
दिन रात याद आओगे
याद आएगी माँ की वो लोरी सुनना, और बाबा का हाथ पकड़कर चलना
शायद यहीं तक था जीवन
यही था जीवन का अंत होना।।
✍🏻ईशान शर्मा ✍🏻
बेहतरीन, मर्मस्पर्शी कविता