कविता – दो चेहरे

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कविता – दो चेहरे

क्या तुमने कभी देखे हैं दो चेहरे वाले लोग ?
गर नहीं देखे तो अपने अंदर झांक ले ।
पूछ ले अपने अंतर्मन से, अंतर्रात्मा को  ताक ले ।
क्या तेरे दो चेहरे नहीं ?
एक चेहरा जो दिखता है हर कहीं,
दूसरा चेहरा जिसे तू दिखाता नहीं।
एक चेहरा जिस पर तूने बनावटीपन चढ़ाया है,
और दूसरा जिसे तुने दुनिया से छुपाया है ।
एक चेहरे से तू बुराइयों  को छिपाता है,
और दुसरा तुझे तेरी बुराइयों से अवगत कराता है।

एक चेहरा है मुखौटा समाज में तेरी प्रतिष्ठा, मान और बडाई का,
और दूसरा है प्रतिबिम्ब तेरी सच्चाई का।
देखते हैं आयना तो पहला चेहरा नजर आता है,
और दूसरा तो बस आंखे बंद करने पर दिख जाता है।
जिन बुराइयों को छिपाता है तू जमाने से,
उन्हें दूसरा चेहरा ही तुझे दिखाता है।
फिर भी न जाने क्यों ?
तुझे पहला चेहरा ही भाता है।

जिस दिन तू बुराइयों को छिपाने के बजाय उन्हें दूर कर पाएगा,
उस दिन तेरा पहला और दूसरा चेहरा एक हो जाएगा॥

– राजेंद्र कुमार 

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