कविता- तृतीय विश्व युद्ध

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कविता – तृतीय विश्व युद्ध

विकास के पहिए
शहरों की ढेर सारी आबादी को
वापिस छोड़ आए हैं गांव
ये कहकर,
कि यही है सबसे सुरक्षित ठिकाना
अनिश्चितकाल के लिए गांव की प्रतिष्ठा में
लग गए हैं चार चांद!
जब, एक वायरस
लील रहा है कई जिंदगियों को
ऐसे दौर में नहीं हैं हम अकेले
आज हमें,
धन्यवादी होना चाहिए जुकरबर्ग का,
खाकी और सभी सफेद वर्दी धारकों का।

कोरोना अकेला होता तो शायद
लड़ाई आर-पार की होती
मगर, इस वक्त
धर्म और संप्रदाय जैसे वायरस भी
कर चुके हैं
कोरोना के साथ संधि
और ऐसे में तैयार हो रही है
मानव बमों की एक बड़ी खेप।

इस वक्त सख्त जरूरत है
दहलीज़ के अंदर रहने की
ताकि बचाया जा सके
आदम जात का अस्तित्व!!
इतिहास में ये समय लिखा जाना चाहिए
तृतीय विश्व युद्ध के रुप में
किंतु, ऐसा युद्ध
जिसमें प्रकृति को मिली है
ढेर सारी करुणा, प्रेम और
एक नूतन आरंभ का बिंदु।

मानव के इस पुर्नजागरण के बाद
कविता भी लेगी
नई सोच के साथ नई सांसे
परंतु, भविष्य में
मानव के साथ-साथ
गांवों को भी है
शहर में बदल जाने का खतरा।

  • दीपक भारद्वाज

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