एक बस सफर के दौरान बस में लिखे वाक्य “सोचो,साथ क्या जाएगा”को पढ़ कर इस कविता का विचार मन में आया था।
सोच,साथ क्या जाएगा?
“अनमोल बड़ी है ये जिंदगी,खुशी से इसे बीता ले तू।
बड़े बड़े हैं सपने तेरे,हकीकत इन्हें बना ले तू।
पर मत भूलना ये कभी,
खाली हाथ तू आया है,खाली हाथ तू जाएगा।
सोच,साथ क्या जाएगा?
पैसा चाहे कितना खींचे,ना भाग पैसे के पीछे।
सबसे बड़ा नहीं पैैैसाा, तू कब ये समझ पाएगा?
सोच,साथ क्या जाएगा?
पैसा तो है मैल हाथ का, कभी आता कभी जाता है।
पानी का एक छोटा कतरा मैल बहा ले जाता हैै।
कब तलक तू अपनी मुट्ठी,यूं बंद रख पाएगा?
सोच,साथ क्या जाएगा?
एक तरफ तेरे अपने होंगे, एक तरफ पैसे होंगे।
कशमकश में होगा तू,पैसा तुझको ललचाएगा।
क्या तू खुद को रोक पाएगा?
सोच,साथ क्या जाएगा?
हवेलियां बहुत बना ली तूने,पास तेेेेरे पैसों का ढेर है।
बहुत हैं पर अपने नहीं ,यह किस्मत का फेर है।
क्या पैसों की खनक से तू अपनों को भूल पाएगा?
सोच,साथ क्या जाएगा?
अपनों को तूने छोड़ा, कई वादों को तूने तोड़ा।
लालच की अंधी दौड़ में, पैसों पर पैसों को जोड़ा।
पैसा होगा हर ओर तेरे,फिर भी तू पछताएगा।
सोच, साथ क्या जाएगा?
सोच,साथ किया जाएगा? ”
-राजेंद्र कुमार