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रेंगने से भागने तक

रेंगने से भागने तक

जीते नहीं थे,काटते थे जिंदगी |
 घिसटते थे,खिसकते थे,रेंगते थे |
ऐसा न था कि सभी रेंगते ही थे |
देखने में थे हू ब हू ही,
पर कुछ खड़े होते, चलते और दौड़ते भी थे |
पर कभी सोचा ही नही वो क्यूँ हैं दौड़ते?
और हम हैं बस रेंगते |
कोई शिकायत भी न थी जिंदगी से,
होती भी कैसे?
कुछ सोचते तभी तो शिकायत करते |
क्योंकर कुंद हो गई थी सोच ऐसे?
सदियों से सिर्फ रेंग ही रहे थे ऐसे |
चाहते न थे “चलने-वाले”,
“रेंगने-वाले” भी चलें उनके जैसे |
सदियों की निर्मम ताड़ना से,
भय भयंकर भर दिया अंतर्मन में |
अब रेंगने के सिवा,
कोई सोच न बची उन सब के मन में |
मान के रेंगने को मुक़द्दर अपना,
न सोचा,न देखा चलने का सपना |
वक्त गुज़रा,फिर फूटा अंकुर बंजर मन में,
पर बहुत कठिन था उग पाना |
भले परिस्थितियां थी विपरीत,
पर उसने रुकना न जाना |
वो लड़ा,वो उठा,वो चला |
और खुद अपनी राह बनाई |
तैरा धारा के विपरीत,
रेंगा नहीं,दौड़ लगाई |
चलना सिखाया,पथ दिखलाया,
चलने का सबको हक़ दिलवाया |
देख परिवर्तन व्यवस्था में,
पहले से “चलने-वाले” बौखलाए |
रौंदते थे जो अधिकार औरों के,
उन्हें अपने अधिकार याद आये |
चरणों से ही जन्म लिया,
है स्थान तुम्हारा चरणों में |
रेंगना ही है काम तुम्हारा,
क्या रखा है चलनें में |
सदियों से हम ही चलते आये हैं,
चलने पर अधिकार हमारा है |
इनका चलना बंद करो,
ये तो शोषण हमारा है |
देख के चलता “रेंगने-वालों” को,
“चलने-वाले” जलने लगे |
जलने वाले जलते रहे ,
“रेंगने-वाले” चलने लगे |
“रेंगने-वाले” चलना सीखे,
वो न सीखे,सिखाना |
भूले “रेंगने-वालों” को,
भूले उनको पथ दिखलाना |
वो न सीखे दौड़ लगाना,
वो तो सीखे भागना |
भागना संघर्ष से,
भागना जिम्मेदारियों से,
भागना मुश्किलों से,
और भागना दूर उनसे,
जो अभी भी रेंग रहे हैं |
वो सीखे भागना,
क्योंकि वो मन से अभी भी रेंग रहे हैं |
Super RK

नफ़रत के बीज (कविता)

 

नफ़रत के बीज

 

शहरों से दूर, आधुनिकता से परे, भौतिकता के पार, दूर सुदूर क्षेत्र में प्रकृति की गोद में बसा एक गाँव। गांव के लोगों का अपना ही था काम।

खेती-बाड़ी और पशुओं को चरा लेते थे। खुशी से जीवन जी लें, बस इतना सा कमा लेते थे। पैसों की कोई होड़ नहीं थी, बस रिश्तों को निभा लेते थे। मिलजुलकर रहना सीखा पुरखों से, आगे भी यही सिखा लेते थे।

बैठ उड़न खटोले पर एक दिन,बड़े लोग आये हैं। कुछ लेना नहीं है उनको, बस देने ही तो आए हैं। देंगे आपको सब सुख सुविधाएं जिनसे आप वंचित हैं, सपने पूरे होंगे वह भी जो आप देख ना पाए हैं।

लाये हैं हम नये बीज, जो आपको अच्छा समय दिखाएंगे। फसलें होंगी पैसों की,आप गिन भी ना पाएंगे। मुफ्त के इन बीजों को लोगों ने जल्दी से समेट लिया। कुछ ने ज्यादा,कुछ ने कम, जितना मिला लपेट लिया।

“ये कौन सी फसल के बीज हैं? ”कुछ ने ये सवाल किया। सपनों में डूबे लोगों ने उस सवाल पे बड़ा बवाल किया। “कौन है ये?जो बड़े सवाल करते हैं।”

यह गांव के द्रोही हैं, इन्हें गांव से बाहर करते हैं।

बोए बीज फसलें उगी। अब खुशहाली की शाम हुई। लड़ाई, झगड़े ,मार काट, ये बातें अब आम हुई। गांव अब पहले सा ना था, ना वो भाईचारा था। सब कुछ प्रत्यक्ष था सबके कि, कौन सा समय बीत चूक था, कौन सा समय आ रहा था। बस आँखे मूंद रखी थी सबने, समय बीतता जा रहा था।

बो दिए बीज नफरत के वो, सब ने था ये जान लिया। फेंकेंगे पट्टी खोल आँखो की,सब ने था अब ठान लिया। बोए हैं बीज अब, तो फसलों को भी तो काटना होगा। अभी से इतनी नफरत है तो पकने पर जानें क्या-क्या होगा?

पकने से पहले ही काट दी फसलें । अब नफरत यहाँ ना टिक पायेगी। कितने भी कोई पैसे दे दे, अपनी खुशियाँ ना बिक पाएंगी।

-super RK

हिमरी गंगा II डायना पार्क IIस्वर्णिम वाटिका बासाधार

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हिमरी गंगा / डायना पार्क /स्वर्णिम वाटिका बासाधार

भारत एक लोकतांत्रिक देश है,इसलिए यहां समय-समय पर लोकतंत्र का सबसे बड़ा महापर्व यानी चुनाव होते रहते हैं। चुनाव को सफल बनाने के लिए सरकारी कर्मचारी बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सरकारी कर्मचारी होने के नाते मैं भी कई दफा इलेक्शन ड्यूटी दे चुका हूं। इस बार मंडी संसदीय क्षेत्र के उपचुनाव की इलेक्शन ड्यूटी के दौरान मेरी इलेक्शन रीहर्सल पधर में हुई। इलेक्शन रिहर्सल के बाद मेरे मित्र योगेंद्र ने कहा कि क्यों ना हम मंडी वापसी हिमरी गंगा तथा डायना पार्क होते हुए करें। मुझे यह सुझाव अच्छा लगा।और हम दोनों निकल पड़े पधर से मंडी के इस नये सफर पे। पधर से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है हिमरी गंगा । हिमरी गंगा तक गाड़ी द्वारा 15 से 20 मिनट में आसानी से पहुँचा जा सकता है। सड़क की हालत ठीक है। सीयून पंचायत में सड़क किनारे हिमरी गंगा के लिए एक भव्य द्वार है। कुछ मिनट के पैदल सफर के बाद हम एक विशालकाय वृक्ष के नीचे स्थित पवित्र स्थल हिमरी गंगा पहुंच गये। हिमरी गंगा हरे भरे पेड़ों से घिरा एक प्राकृतिक जल स्त्रोत है।यह बहुत ही सुंदर,मनमोहक, एकांत और शांत जगह है। जहां पर पहुंचकर आपके मन को शांति का अहसास होता है। हिमरी गंगा एक पवित्र स्थान है जहां दूर-दूर से लोग स्नान करने आते हैं । मान्यता है कि यहां दामन फैलाकर मांगी गई हर मन्नत पूरी हो जाती है। मिनी कुंभ के नाम से प्रसिद्ध एक दिवसीय मेले में यहां निसंतान दंपतियों तथा अन्य श्रद्धालुओं का दिन भर तांता लगा रहता है। यह स्थान निसंतान महिलाओं के लिए भी विशेष महत्व रखता है। नि:संतान महिलाएं पानी के स्त्रोत में अखरोट फैंकती हैं और नीचे की तरफ अपने दुपट्टे को लेकर खड़ी हो जाती हैं। ऐसी मान्यता है कि भाग्य से जिस महिला के पास अखरोट आकर गिरता है उसे संतान प्राप्ति होती है। लोक कथाओं के अनुसार देवता हुरंग नारायण बाल रूप में सनेड गांव की एक वृद्ध महिला के घर ग्वाले का काम करते थे। गांव के अन्य बालकों के साथ में गायों को घोघड़धार चराने के लिए ले जाते थे। सभी बालक गायों को पानी पिलाने के लिए उहल खड्ड ले जाते थे। लेकिन हुरंग नारायण एक विशालकाय पेड़ के नीचे अपनी छड़ी चुभाते और वहां से पानी की धारा निकल जाती और वे गायों को वहां पानी पिलाते थे। जब अन्य बालकों ने यह देखा कि हुरंग नारायण उहल खड्ड में अपनी गायों को लेकर पानी पिलाने नहीं लाते तो उन्होंने वृद्ध महिला से हुरंग नारायण की शिकायत कर दी। जिससे वृद्ध महिला को बहुत गुस्सा आया और गुस्से में उन्होंने हुरंग नारायण को घर से निकाल दिया। अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए हुरंग नारायण वृद्ध महिला को उस पेड़ के नीचे ले गए और जैसे ही उन्होंने वहाँ छड़ी चुभाई वहां से पानी की धारा निकल गई। पानी की धारा निकलते ही हुरंग नारायण वहां से अचानक गायब हो गए । यही पानी की धारा आज भी उसी स्थान पर प्रवाहित होती है और इसे हम हिमरी गंगा के नाम से जानते हैं। हिमरी गंगा के खूबसूरती,शांति, और मनमोहक प्राकृतिक दृश्यों को दिल में संजोये हम अपने अगले गंतव्य की ओर बढ़ चले। हिमरी गंगा से लगभग 3km की दूरी पर स्थित है घोघड़धार में स्थित डायना पार्क। सड़क पे थोड़े गढे देखने को मिल जायेंगे। आसपास मक्की के लहलहाते खेत। हालांकि मंडी के अन्य इलाकों में एक महीने पहले ही मक्की की फसल काट दी गई है, लेकिन यहाँ अभी भी फसल खेतों की शोभा बढ़ा रही है।यहाँ से बहुत नीचे गहराई में बह रही है उहल खड्ड और सामने आसमाँ को चूम रही हैं हाथीपुर की पहाड़ियाँ। नज़ारा इतना खूबसूरत की शब्दों में बयाँ ना हो सके। सड़क दो हिस्सों में बँट जाती है एक मंडी और दूसरी झटिंगरी बरोट की ओर। अब बात कर लेते हैं यहाँ से जुड़ी धार्मिक मान्यता की। मान्यता है कि घोघड़धार में देवों और डायनों के मध्य युद्ध होता है. यहाँ युद्ध का स्थान भी चिन्हित है, युद्ध के समय कोई भी उस स्थान में नहीं जाता है. किवदंती के अनुसार भादों का महीने को काला महीना भी कहा जाता है. इस माह के दौरान देवता युद्ध में चले जाते हैं तथा जादू टोना हावी हो जाता है.घोघर धार में चल रहे युद्ध का परिणाम नवरात्रों में देवी देवताओं के गुर या पुजारी बताते हैं अगर देवताओं की जीत हो तो सारा साल सुखमय रहता है तथा अगर बुरी शक्तियाँ जीते तो आने वाले साल में आपदा आती है. मंदिरों में रात भर होम का आयोजन होता है तथा पुजारी अंगारों पर खेलकर भक्तों पर आई बला को टालते हैं। इस मान्यता पर आप कितना विश्वास करते हैं ये आप पर छोड़कर हम आगे बढ़ते हैं। हमारी अगली मंज़िल है बसाधार स्थित स्वर्णिम वाटिका। यह घोघड़धार से लगभग 13km की दूरी पर है। सड़क के हाल बहुत ही खराब, लेकिन आसपास के खूबसूरत नज़ारे खराब सड़क की परेशानी को नज़रंदाज़ करने में आपका शत प्रतिशत सहयोग देते हैं। हरे भरे खेत, मवेशी चराते ग्रामीण, बान तथा चीड़ के वृक्ष और भी कई खूबसूरत नज़ारे हमारे सफ़र के गवाह बने। कहीं कहीं सड़क पक्की हो रही है,हो सकता है अगली दफा सड़क परेशानी का कारण ना बने।लगभग पौने घंटे के सफ़र के बाद हम स्वर्णिम वाटिका बसाधार में थे। चीड़ के वृक्षों के मध्य फूल की क्यारियाँ, बैठने के लिए बेंच, एक शेड वाली छोटी सी वाटिका। एकांत प्रिय लोगों के लिए एकदम सटीक जगह। कुछ समय के भ्रमण के पश्चात हम कटिण्डी होते हुए मंडी को निकल गए। एक छोटा सफर लेकिन बहुत से खूबसूरत अनुभव। आप भी समय निकलिए, बिताइये कुछ समय प्रकृति के आँचल में । धन्यवाद। -superRk

मैं सर्वश्रेष्ठ हूँ।

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मैं सर्वश्रेष्ठ हूँ।

मैं सर्वश्रेष्ठ हूँ। क्या कहा तुमने? “कैसे ?” पहली बात तो ये, तुमने मुझसे प्रश्न किया कैसे? प्रश्न करे तु मुझसे, तेरी ये औकात नहीं। लेकिन मैं सर्वश्रेष्ठ हूँ। हैरानी की तो बात नहीं। दूसरी, प्रश्न ही गलत ये तुम्हारा है। फिर भी,उत्तर देना फ़र्ज़ हमारा है।

मैं सर्वश्रेष्ठ हूँ। मैं शिक्षा की बात नहीं कर रहा, और ना ही अपने काम की। ना कला, खेल, संगीत की, ना साहित्य, कृषि, विज्ञान की। बात नहीं किसी परीक्षा की, ना किसी सामाजिक काम की।

हज़ारों वर्षों पहले मेरे पूर्वजों ने खून बहाया है। वे वीर थे, ज्ञानी थे, कहानियों में भी यही बताया है। उन्होंने वो पेशा चुना जो औरों से ज्येष्ठ हुआ। आवश्यकता नही कुछ कहने की, क्यों मैं सर्वश्रेष्ठ हुआ?

सर्वश्रेष्ठ होने के लिए आवश्यकता नहीं मुझे कुछ करने की। कहाँ जन्मा हूँ यही काफी है,बात नहीं अब डरने की। तुम मेहनत करके भी कितना ऊँचा जाओगे? क्या लगता है? समाज में मुझसे ऊपर जा पाओगे?

जरा सोचो कौन मुझे सर्वश्रेष्ठ मान बैठा है? तुम्हारे दबी सोच के कारण ही तो मैं समाज में प्रेष्ठ हूँ। ““हा हा हा” मैं सर्वश्रेष्ठ हूँ।

super RK

सही गलत (कविता)

सही गलत

किसी बात से व्यथित मन, 

 व्यथित मन ने लिया ठान,

क्या सही है क्या है गलत?

अब तो वह यह लेगा जान।

विचारों के विमान संग, 

उड़ता फिर रहा था मन। 

फिर दृश्य एक देखकर, 

मन गया वही पर थम । 

ठीक उसी स्थान पर,

खत्म हो गई थी जंग।

 यही तो वह स्थान है, 

जहां सभी सामान है,

जो करें व्यथा खत्म, 

कि क्या सही है क्या गलत? 

मन गया वहीं ठहर, 

बीते पल बीते पहर।

भटका मन पूरे शहर। 

क्षित विक्षित लाशें थी, 

लोगों का विलाप था। 

हार की निराशा थी,

 दुख था, संताप था ।

रेंगते शरीर थे, 

भयावह रक्तपात था।

घायलों की आह थी, 

निकट मृत्यु देखकर, 

निकली करुण कराह थी ।

अश्रुपूर्ण नेत्रों में, 

ज़िंदगी की चाह थी।

पर मंज़िल अब मृत्यु थी, 

ना अन्य कोई राह थी ।

मिट गया सिंदूर था,

स्त्रियों की करुण पुकार थी, 

सन्नाटा चिरती चीत्कार थी।

 दूधमुंहे बच्चे साथ थे, 

अब से वो अनाथ थे ।

जो शहर बड़ी हस्ती थी,

अब केवल उजड़ी बस्ती थी।

 आंसू थे, उदासी थी, 

घनघोर,स्याह खामोशी थी।

 

कुछ झुर्रीदार चेहरे थे, 

चेहरे में जख्म गहरे थे, 

 जो मौत से कुछ कह रहे थे, 

बहुत हुआ अब इंतजार, 

अब ले हमें भी आगोश में, 

अब रहना नहीं होश में।

भूखे गिद्ध टूट पड़े, 

उनको भी कुछ खाना था, 

अपना अस्तित्व बचाना था ।

 व्यथित मन और व्यथित हुआ, 

उसने अब यह जान लिया, 

युद्ध “गलत” है, मान लिया।

 पर मन तो तो मन है, 

कब रुका है? 

फिर से मन भटक गया, 

थोड़ा आगे निकल गया।

आगे एक स्थान था, 

जो जश्न को तैयार था।

 जगमगाता महल था,

खुशियों का त्योहार था।

पूरी की पूरी नगरी, 

पुष्पों से सजाई थी, 

बाजे थे नृत्य था, 

हर तरफ बधाई थी।

आनंद था, हर्ष था, 

बंट रही मिठाई मिठाई थी।

हर गली, हर घर में,

अनोखी खुशी छाई थी ।

बच्चे बूढ़े प्रसन्न थे, 

सिंदूर फिर से चमका था।

बेटों की विजय पर माँएं भी हर्षायी थी ।

राज्य ये वही था, 

युद्ध में जीत जिसने पाई थी ।

मन की व्यथा अब कम थी, 

देख के उल्लास ये, 

मन ने ये जान लिया, 

युद्ध तो “सही” है,

मन ने ये मान लिया ।

पर कैसे? 

परिणाम भले दो हों, 

युद्ध तो वही है ।

बात तो एक थी, 

कहीं गलत,कहीं सही है ।

मन सब समझ गया, 

किसी की जीत,

किसी की हार भी तो है।

कहीं है दुःख, 

तो कहीं त्यौहार भी तो है।

शिकार की जान,

 शिकारी का आहार भी तो है। 

किसी की पीड़ा कोई ना जाने,

 जिस तन लागे, वो तन जाने।

क्या सही है क्या गलत है?

कौन जाने? 

जो सही किसी के लिए, 

कोई और उसको गलत माने। 

 

सही या गलत, 

ये तो एक तमाशा है ।

क्या सही क्या गलत, 

सबकी अलग परिभाषा है ।

super RK

महल के द्वार में ।

हो तपती गर्मी या हो सर्दी, उगाई फ़सलें तूने सदियों, हर मौसम की मार में।  तू कौन है?  जो आ खड़ा है, महल के द्वार में ।   चुप ही था तु तो सदा, सर झुका रहता था तेरा, हर दुख में हर हार में।  ऊँचा है सर, आवाज़ भी ऊँची क्यों है अबकी बार में,  तू कौन है?  जो आ खड़ा है, महल के द्वार में ।     नंगा बदन, फटे चिथड़े,  पहचान तेरी ये रही, किसीआम दिन चाहे त्योहार में।  साफ कपड़ो में, तू कौन है?  जो आ खड़ा है, महल के द्वार में ।   किसान तो तू है नहीं, बात ये कुछ और है,  जो हिल रहा है सिंहासन, तेरी एक दहाड़ में।  तू कौन है? जो आ खड़ा है, महल के द्वार में। 

राजा की बात मान ले, चाहे बात हो कोई। ना माना तो दुश्मन है, या है तू देश द्रोही। तुझको चुप करवा देंगे हम,  झूठे आरोपों की बौछार में, तू कौन है? जो आ खड़ा है ,महल के द्वार में।
-super RK