हर हफ्ते आ जाता है ये रविवार सोचने को मजबूर करता है कि क्या किया जाए इस बार!

इस रविवार को सांगला घाटी में बास्पा नदी के किनारे बसे एक छोटे से लेकिन बेहद ही खूबसुरत गांव, “आजाद कश्मीर” के दिलकश नजारे देखने का अवसर प्राप्त हुआ। जी हां, गांव का नाम आजाद कश्मीर ही है।जब मैने पहली बार गांव का नाम सुना था तब मुझे भी विश्वास नहीं हुआ था। लेकिन सरकारी कागजातों में भी गाँव का यही नाम अंकित है । ये नाम किस तरह पडा इस  बात की जानकारी किसी से भी न मिल सकी, लेकिन इस गांव में घुमने के बाद अहसास हुआ कि क्यों यहां का नाम कश्मीर पडा होगा।

आजाद कश्मीर सांगला से 2 कि० मी० की दूरी पर बास्पा नदी के दाईं तरफ स्थित है। बास्पा नदी पर बने पुल को पार करने के बाद  कुछ मिनट के सफर के बाद रूक्ती खड्ड के पार स्थित है आजाद कश्मीर। वहीं पर रूक्ती पावर प्रोजेक्ट भी स्थित है। रूक्ती खड्ड पर बना पुल बाढ आने के कारण टूट चुका है। उसी जीर्ण शीर्ण पुल को पार कर जब हमने देवदार के बडे बडे तथा घने पेडों के जंगल में प्रवेश किया तभी दिमाग को वो उत्तर मिल चुका था कि क्यों इस स्थान को कश्मीर की संज्ञा दी गई है। कश्मीर को जन्नत कहा जाता है और सांगला का ये छोटा सा गांव भी जन्नत से कम नहीं। घने जंगल के बीच से गुजरती कच्ची सडक को देखना अत्यन्त ही मनमोहक दृश्य लग रहा था। जंगल से बाहर निकल कर सेब के बगीचे, खेत ,घर तथा घरों के बाहर सर्दियों के लिए इकट्ठी की लकडियों के ढेर देखने को मिले। नदी के इस तरफ धूप बहुत कम ही पडती है जिस कारण यहां साल में  6-7 महिने बर्फ पडी रहती है और ये कहा जाए कि  उस समय यहां की खुबसूरती के आगे कश्मीर  की खुबसूरती भी फीकी लगेगी तो ये कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।

थोडा आगे बढने पर ट्राउट फिश फार्म था जिसमे अंडे से लेकर बडी ट्राउट फिश के बीच की प्रत्येक अवस्था की मछलियाँ अलग अलग टैंक में देखने को मिली। कुछ लोग बास्पा नदी में भी कांटे से मछलियाँ पकडते हुये दिखे। फार्म के बाहर पानी के छोटे छोटे प्राकृतिक पोखर थे जिनमें भी ट्राउट मछलियाँ तैर रही थी इनमें और फार्म की मछलियों में कुछ अंतर तो जरूर था शायद वो अंतर इन मछलियों का आजाद होना था।
जंगल की हसीन वादियों से होते हुए वापिस लौटे, रुक्ती नदी का जल प्रवाह बरसात होने के बाबजूद कम ही था। कल-कल बहता  निर्मल पानी जैसे हमे बुला रहा था। पुल के रास्ते न जाकर हमने पत्थरों से नदी को पार किया ।

वापिसी के रास्ते में हमने “चुली” के स्वाद का आनंद लिया। चुली खुमानी का ही एक प्रकार है। चुली किन्नौर का बहुत महत्वपूर्ण फल है। इस फल का प्रत्येक भाग काम मे आता है। बाहरी भाग खाने के, गुठली का सख्त भाग जलाने के, गिरी का इस्तेमाल खाने, तेल बनाने, चटनी में, और माला बनाने के काम में होता है। ये माला सम्मान के रूप में विभिन्‍न अवसरों में भेंट स्वरूप दी जाती है। चुली का उपयोग स्थानीय मदिरा (शराब) को बनाने में भी होता है। चुली को सुखाकर सर्दियों में बडे चाव से ड्राइ-फ्रूट की तरह भी खाया जाता है।

आजाद कश्मीर प्रकृति की अकल्पनीय सुंदरता को अपने आंचल में समेटे हुए है, लेकिन ज्यादातर पर्यटक अपने सांगला भ्रमण के दौरान इस स्थान को देखने से चुक जाते हैं। अगर आप प्रकृति प्रेमी हैं और किन्नौर घुमने की सोच रहे हैं तो आजाद कश्मीर देखना कभी न भूलियेगा।

और मैं इस रविवार को कभी न भुला पाउंगा !!

– राजेंद्र कुमार 

आज़ाद कश्मीर की कुछ तस्वीरें –

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