“खूबसूरती ऐसी,जो आंखों से सीधे दिल में उतरकर, कर दे दीवाना।
जहां सनसनाती ठण्डी हवाओं के झोंकों संग
उड़ते बादल गाते हैं मधुर तराना।
देवदार के पेड़ पहरेदार हों जैसे इन हसीन वादियों के……
खुद से मुलाकात करने की पहाड़ों से बेहतर कोई जगह हो तो जरूर बताना..”
हिमाचल में बहुत से स्थान ऐसे हैं, जहाँ सभी जाना चाहते हैं, लेकिन कुछ स्थानों पे जाना संयोग ही होता है। ये स्थान खूबसूरती में अन्य स्थानों से किसी भी प्रकार से उन्नीस नहीं होते, लेकिन पर्यटन मानचित्र पर इनका कोई स्थान नहीं होता। ऐसे ही अनछुए खूबसूरत नजारों से रुबरु होने का मौका मिला लोकसभा इलैक्शन के दौरान।
मुंदलीधार पर स्थित गाँव शाल हमारी मंजिल थी। सुंदरनगर से बस का सफ़र करते हुए हम निहरी पहुंचे। मौसम का मिजाज़ बिगड़ा हुआ था। रास्ते में बारिश के साथ ओलों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। निहरी पंहुचने तक बारिश थम गई थी।
गज़ब के प्राकृतिक सौंदर्य को अपने आप में समेटे हुए निहरी एक खूबसूरत दर्शनीय स्थल है। यह सुंदरनगर से लगभग 50km की दूरी पर स्थित है। मण्डी-करसोग मार्ग पर पंडार नामक स्थान से दाईं ओर मुड़कर निहरी पंहुचा जाता है। निहरी समुद्र तल से 2065m की ऊंचाई पर स्थित है।
मई महीने में भी बारिश के कारण ठंड बढ़ गई थी। और हम गर्म कपड़े भी साथ नहीं लाये थे।दरअसल हमे मालूम ही न था कि ड्यूटी कहाँ लगने वाली है।कंपकंपाती ठंड में भी यहाँ
की खूबसूरती हर किसी को यहां आने का आमंत्रण दे रही थी।आगे का सफर खुली गाड़ी में करना था। निहरी से शाल का रास्ता खराब था लेकिन सफर के दौरान दूसरे हिल स्टेशनों के मुकाबले यहां पर प्रकृति को उसके अनछुए रूप में देखा जा सकता था। चारों तरफ घने जंगलों से घिरी हुई सड़क कुदरती सुंदरता का प्रमाण थी। हरे-भरे छोटे बड़े देवदार के पेड़ों के बीच पहाड़, घुमावदार रास्ते जहां तक नजर जाए बस हरियाली ही हरियाली।बहुत ठंड होने के बावजूद भी प्रकृति के खूबसूरत नजारों का अपना ही आनंद था।बीच बीच में हरे भरे खेत, घास चरते पशु और स्कूल से घर लौट रहे बच्चे भी मिले। खेतों में गेहूँ,जौ,आलू तथा मटर की फसलें लहलहा रही थी।सेब के पेड़ों पर भी छोटे छोटे फल नजर आ रहे थे।कंपकंपाते हुए अपनी मंजिल तक पंहुच ही गये।रात को ठहरने का बंदोबस्त करने के बाद हम टहलने के लिए निकल गए।आसपास स्लेट की छत वाले मकान आकर्षित कर रहे थे।थोड़ी ही दूरी पर स्थित माता शैलपुत्री चतुर्भुजा जी का मंदिर खूबसूरती को चार चांद लगा रहा था। पत्थर और लकड़ी से पैगोड़ा शैली में बना ये मंदिर बेहद ही खूबसूरत है।लकड़ी पर की गई नक्काशी बहुत ही सुंदर है।पहाड़ की चोटी पर बने इस मंदिर के पास ही शिवलिंग तथा हनुमान जी की मुर्तियां भी बनी है।शाम होने तक हम वापिस अपने ठिकाने तक आ गए।
शाम को गाँव का एक छोटा लड़का हमारे पास आ गया।बातों बातों से पता चला कि ईश्वर ने उसे खूबसूरत आवाज दी है।उसने हम सबको एक सुंदर पहाड़ी गाना सुनाया।
अगले दिन अपने कार्यों को निपटा कर हम आसपास के ईलाके को देखने निकल पड़े।अब हमारे सामने थी “मुंदलीधार”। आसपास की सभी पहाड़ियां देवदार के पेड़ों से भरी पड़ी थी लेकिन मुंदलीधार पर कोई पेड़ नहीं था।शायद इसलिए ही इसका नाम मुंदलीधार पड़ा होगा।यहाँ से आसपास का नजारा बहुत रमणीय था।
दूर तक फैले पहाड़,पहाड़ों पर अठखेलियाँ करते बादल, ताजी हवा, डूबते सूरज का नजारा, रात के समय खुले आकाश में चमचमाते तारे और सुबह पत्तों पर गिरी ओस की बूंदें, कुदरत से बातें,सरल जीवन,सब मिलाकर ये अविस्मरणीय अनुभव था।
यदि आपको ऐसा मौका मिले तो जरूर प्रकृती के साथ थोड़ा वक्त बिताएं, अच्छा लगेगा।
-राजेेेन्द्र कुमार