वापिस (कविता)

जब गुजरता हूं खुद किसी भयावह स्थिति से, तो सोचता हूं अक्सर उसकी वजह  मैं। चाहता हूं मिटा दूं उस वजह को ही, पर लौट आता हूं अक्सर उसी जगह मैं। गुजरा हूं...

कविता- “वक्त”

  वक्त का क्या कोई मोल है? वक्त बड़ा अनमोल है। जो वक्त की कीमत जानता है, उसे जमाना मानता है। हम ही बहते जाते हैं इस वक्त की धार में, वक्त कहां रुका करता...

कविता – नए प्रतिबिम्ब

कविता – नए प्रतिबिम्ब खो गए हैं वक्त के आईने से, जो सपने संजोए थे मैंने, समेटने की, कि थी कोशिश बहुत, पर बिखर गए सैलाब बन कर। धूमिल होते आईने पर उभर रहे हैं, प्रतिबिम्ब नए नए ! मिलते नहीं...

किन्नौर डायरी – फूलैच-फूलों का उत्सव

त्यौहार चाहे कोई भी हो,हर किसी को इनका इंतजार रहता है। और इंतजार हो भी क्यों ना? आजकल की व्यस्तता भरी जिंदगी में ये त्यौहार ही हैं जो हमें...

कविता – दो चेहरे

कविता - दो चेहरे क्या तुमने कभी देखे हैं दो चेहरे वाले लोग ? गर नहीं देखे तो अपने अंदर झांक ले । पूछ ले अपने अंतर्मन से, अंतर्रात्मा को  ताक ले...

कविता – जहां हम रहते हैं

जहां हम रहते हैं जहां हम रहते हैं वहां हमारे पड़ोस में बहती है नदी बच्चों की तरह चंचल हड़बड़ी में मैदानों की ओर भागती हुई पड़ोस में जंगल है देवदार के पेड़ों से भरा हुआ हमारे...