कविता – जहां हम रहते हैं

0
895

जहां हम रहते हैं

जहां हम रहते हैं
वहां हमारे पड़ोस में बहती है नदी
बच्चों की तरह चंचल
हड़बड़ी में मैदानों की ओर
भागती हुई

पड़ोस में जंगल है
देवदार के पेड़ों से भरा हुआ
हमारे लिये किसी सगे सा
इस जंगल को कटने से बचाने के लिए
चिपक गईं थी पेड़ों से हमारे इस जनपद
की औरतें
दूर दूर तक गई थी
इस आंदोलन की गूंज

ग्रीष्म में इस जंगल की नमी में
पैदा होता है
खूब लिंगड़

कभी कभार
पड़ोस के शहर में भी
बेच आती हैं औरतें लिंगड़
और कमा लेती हैं इतना भर पैसा
की खरीद सकें नमक
गुड़ और बीड़ियाँ
त्यौहार जैसा दिन होता
वो उनके लिए

हमारे बच्चे अधिकतर
फौज में जाते हैं
या उठाते है शहरों मे बोझा
कभी कभार कोई चला लेता है टैक्सी
किसी बडे शहर में
इसके इलावा है भी क्या रोजगार है भला
पहाड़ी गांव के बच्चों के लिए

यहां दूर है पानी के सत्रोत
रास्ते बहुत ही कठिन
यही कारण है जो भी हमारा
बच्चा शहर की ओर गया
उसका लौटना मुशिकल

कारगिल में हमारे ही
बच्चे भेजे गये थे युद्ध मे
वे ही झेल सकते थे
ऊंचे पहाड़ों की हवा का दवाब
वे ही हुए शहीद

पिछले यद्ध के बाद
पहाड के हर गाँव को
शहीदों का गांव कह गए थे
रक्षा मंत्री

आजकल यहां के
लगभग सभी गांव
बूढ़ों विधवाओं औऱ
छोटे छोटे बच्चों के गांव है

ये देश के सबसे उदास गांव है

यहां के खेत कभी खूब उर्वर थे
आजकल बन्जर है यहां

औरतों यहां
हंसती है
रोने की तरह
घुट घुट कर करती
रहती है विलाप

यह विलाप
सगा है पहाड़ का

सुरेश सेन निशान्त
गांव सलाह, डाकघर सुन्दर नगर 1
जिला मण्डी, हिमाचल प्रदेश पिन 175018

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here