ख़ामोश (कविता)

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ख़ामोश

क्यों खामोश हैं सब इतने,

क्यों कोई कुछ बोलता नहीं ।

क्यों सह रहे हैं सब कुछ,

क्यों खूँ खौलता नहीं ।

जल रहें है घर गैरों के,

क्यों ना कुछ रो लें हम।

या जलने दें घर अपना,

तभी कुछ बोलें हम।

super RK

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