पारस चौहान की दो कवितायेँ

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1. शहर की झूठी शान में आके, घरो से निकले गांव के बाँके

एक होड़ है किसी मोड़ पर पहुंचने की, अब न जाने, वो मंजिल है या मिराज है।
दुनिया वाले तो यही कहते है कि, जीने का यही सही अंदाज़ है।

पर मुझे ये तर्क समझ नही आते है, जिनको न जाने क्यों लोग सही बतलाते है।
जहाँ पल कुछ पल रुक से जाते है, असल में वही सही लम्हात कहलाते है।

गांव में दो रोटी कम ही सही, पर सुकून से रात को सो तो जाते है।
नींदे छू मंतर हो गई है शहरों की, और गांवो में न जाने कैसे नए नए सपने बस जाते है।

एक हवा में अलग रवानी है गांव में, समंदर शहर में है पर पानी है गांव में।
अब उस समंदर का भी क्या मैं सहारा समझू,एक लहर जो उठी तो खुद को किनारा समझू।।

शहरों में अब तारे नही सितारे चमकते है, पर गांवो में तो अब भी गर्मियों में वही जुगनू दमकते हैं।
चांदनी रातों का पता सिर्फ गांवो में मिलता है, शहरों में तो पूरा चाँद सिर्फ फिल्मो में खिलता है।

2. ये जग, वो जग

इक जग यहाँ भी होता है, इक जग वहाँ भी होता है।
जो राज़ क़ब्र के बाद यहाँ, उस जग में दफ़न यूँ होता है।।
इक जग यहाँ भी होता है, इक जग वहाँ भी होता है।

वो जग, ये जग जग नही, जो झूठ हमे दिखलाता है।
वो जग शायद, वो जग है, जो हमको सच बतलाता है।।

इक दंभ, अहं, जो छिपा है अंदर, वहाँ काम नही आता है।
वहाँ पर केवल भोलापन ही, आपका दर्श बताता है।।

उस जग का करू बखान अगर मैं, तो इतना समझ में आया है।
के वो जग, जो जग वहाँ पे है, वो इस जग का इक साया है।।

हैं रंग वहाँ के अलग-थलग, और अजीब सी इक माया है।
जो इस जग में रहते हुए कोई, अब तक समझ ना पाया है।।

जो जानो तुम ये राज़ है ऐसा, ना वैसा ना ऐसा वैसा।
तो सुनो धयान से, सुनो गोर से, रहो दूर इस जग के शोर से।।

ये झांसा है केवल आंखों का, जाल बुना जैसे धागों का।
फस गया जो फसता ही जाए, रस्ता फिर वो ढूंढ ना पाए।।

तो दूर रहो इस झूठे जग से, झूठी इसकी काया है।
मेने भी इक मोड़ पे खुद को, यहां पे तन्हा पाया है।।

जो फर्क करो तुम इसमे-उसमे, तो जानोगे सच इक गहरा।
ये जग चलता फिरता है, पर वो जग, इक जगह पर ठहरा।।

उस जग की ना कोई बंधन रस्मे, जिसमे कोई फस जाए।
वो बंधन मुक्त जहान है ऐसा, जो खुद की तस्वीर दिखाए।।

जो बैठो इक दिन अंतर करने, उस जग और अपने जग में।
तो पता चलेगा कि वो सच है, और तुम जीते हो मिथ्या में।।

सोचो क्या हो इस जग में तुम, आखिर क्या तेरी हस्ती है?
जिये हो केवल मौज में तुम, क्या जीवन में सब मस्ती है?

पौंटा साहिब जिला सिरमौर (हिमाचल प्रदेश)

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