अलविदा मानसून

0
886

अलविदा मानसून

तुम इस बार कुछ उखड़े उखड़े से रहे! महज़ एक दो बार ही जम कर बरस सके, बाकी सिर्फ आसमान से ही ताकते रहे और हँसते रहे इंसानों के जंगल राज पर! जो रात दिन लगा हुआ है प्रकृति को तहस नहस करने में, अपनी तरफ़ से कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता। तोड़ देना चाहता है सारे से सारे पत्थर, चूस लेना चाहता है नदियों का खून, और खा जाना चाहता है, जंगली जानवरों के साथ जंगलों को भी !

यहां मुझे अपनी ही लिखी कविता याद आ जाती है

सड़कें दो से चार
होने लगी हैं
पन योजनाएं
धड़ा धड़ तैयार
होने लगी हैं !
और घटने लगे
पेड़ों से पत्ते
पहाड़ों से पेड़ !
जैसे सावन में
घटने लगता है
धूप का साम्राज्य
और छाए रहते हैं
काले बादल !

………….

मानसून मैं जानता हूँ इसमें तुम्हारा कोई कसूर नहीं, तुम तो प्रकृति के नियमानुसार ही अपना चाल चलन रखते हो, तुम वक़्त दर वक़्त अपना दुःख अपना गुस्सा भी दिखा देते हो, पर इस धरती पर इंसान सबसे धूर्त प्राणी है वह तुम्हारे प्रलय को भी दैवीय या भगवान की मर्जी बता कर अपना पल्ला सदियों से झाड़ता आया है, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता, तुम जितने मर्जी बादल फाड़ दो, शहर के शहर डुबो डालो, चाहे तो पूरी दुनिया को बंजर ही बना डालो, वह इन सब मे भी किसी दूसरे की गलती ही निकालेगा। इंसान ने अपनी फ़ितरत बना रखी है कि हर गलती को दूसरे पर ही थोपना है। अपने आप को हमेशा पाक साफ़ और श्रेष्ठ ही बनाये रखना है चाहे उसके लिए बड़े से बड़े महाकाव्य या धर्म ग्रंथ ही क्यों न लिखने पड़ जाए।

पर मानसून तुम इंसानों की गलतियों की सज़ा बाकी प्राणियों को मत देना और अगली बार जम के बरसना और सभी जगह बरसना। तुम्हारे ना बरसने से ना जाने कितनी प्रजातियां विलुप्त हो जाएंगी, जो यह तक नहीं जानती की तुम नाराज़ क्यों हो।

मैं तुमसे तहे दिल से अपील करता हूँ कि अगली बार अपने दिल पर पत्थर रख कर और इंसानों को नजरअंदाज कर के बरस जाना, क्योंकि तुम्हारे न बरसने से सबसे ज्यादा इंसान ही भूखे और प्यासे रहेंगे, और मैं जानता हूँ तुम यह नहीं होने दोगे।

नोट – इस बार मेरे क्षेत्र और आस पास के इलाकों में मॉनसून में बहुत ही कम बारिश हुई है तकरीबन 50 प्रतिशत से भी कम, जो नदियां गर्मियों तक पानी से लबालब रहती थी इस बार बरसात में भी खाली खाली ही है, और सितम्बर के महीने में पहले सुबह- शाम ठंड और दिन में सुहावना मौसम रहता था, इस बार यह जून महीने की तरह गर्म है, बरसात मुश्किल से अगस्त के कुछ दिन ही ढंग से बरसी है। जब बरसी तो मंडी शहर में बाढ़ आ गई थी।

– बलवंत नीब

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here