मैं सर्वश्रेष्ठ हूँ।
क्या कहा तुमने? “कैसे ?”
पहली बात तो ये, तुमने मुझसे प्रश्न किया कैसे?
प्रश्न करे तु मुझसे,
तेरी ये औकात नहीं।
लेकिन मैं सर्वश्रेष्ठ हूँ।
हैरानी की तो बात नहीं।
दूसरी, प्रश्न ही गलत ये तुम्हारा है।
फिर भी,उत्तर देना फ़र्ज़ हमारा है।
मैं सर्वश्रेष्ठ हूँ।
मैं शिक्षा की बात नहीं कर रहा,
और ना ही अपने काम की।
ना कला, खेल, संगीत की,
ना साहित्य, कृषि, विज्ञान की।
बात नहीं किसी परीक्षा की,
ना किसी सामाजिक काम की।
हज़ारों वर्षों पहले मेरे पूर्वजों ने खून बहाया है।
वे वीर थे, ज्ञानी थे,
कहानियों में भी यही बताया है।
उन्होंने वो पेशा चुना जो औरों से ज्येष्ठ हुआ।
आवश्यकता नही कुछ कहने की,
क्यों मैं सर्वश्रेष्ठ हुआ?
सर्वश्रेष्ठ होने के लिए आवश्यकता नहीं मुझे कुछ करने की।
कहाँ जन्मा हूँ यही काफी है,बात नहीं अब डरने की।
तुम मेहनत करके भी कितना ऊँचा जाओगे?
क्या लगता है?
समाज में मुझसे ऊपर जा पाओगे?
जरा सोचो कौन मुझे सर्वश्रेष्ठ मान बैठा है?
तुम्हारे दबी सोच के कारण ही तो मैं समाज में प्रेष्ठ हूँ।
““हा हा हा”
मैं सर्वश्रेष्ठ हूँ।