यूँ ही

0

ईश्वर हमारी कृति है, 

मंदिर में प्रवेश तुम्हारी गुस्ताखी है ।

आस्था, आशीर्वाद, पूजा हमारे हिस्से, 

तुम्हारे लिए ईश्वर का डर ही काफी है ।

रोटी – बेटी की बात तो सोचो ही मत तुम, 

हमारे रास्ते, घर, कुएँ को छुने की सोचना ही तुम्हारा भ्रम है, 

ऐसी घटनाएं सामने आये, इसकी संभावना बड़ी कम है ।

 

फिर भी, 

मिल ही जाती है यदा-कदा, 

अखबारों की कत्तरनो में,

 छोटे से हिस्से में छपी छोटी सी कोई खबर,

छोटी नहीं है, ना कभी थी,इसे छोटा बनाया गया,

इसी तरह ना जाने कितनी दफा सच को दबाया गया।

मात्र सच ही तो नहीं दबा, दबती चली गई कई पीढ़ियाँ, 

बुलंदियों तक पहुँचने से पहले, खींची जाती रही हैं सीढ़ियां। 

 जानकर भी जिसको सब बनते हैं बेखबर, दूसरों की चोट पे अब नहीँ होता कोई असर, हृदय है या पाषाण छिपा रखा है सीने में, 

कहीँ आदत ही ना पड़ जाए दबकर जीने में। 

 

क्या खौलता है खून या बर्फ हो गए हो तुम,

इसके मायने नहीं क्या चाहते हो तुम , क्या सोचते हो तुम, 

सोचने से न मिटेगा सदियों का घनघोर अँधेरा, 

 लौ से लौ जलेगी जब, तभी होगा नया सवेरा। 

super RK

NO COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Exit mobile version