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कुछ तो करना होगा(कविता)

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“कुछ तो करना होगा”

हो रहा है आज जो दूसरों के साथ, कल तेरे साथ भी हो सकता है,

तू  जो बना है आज तमाशबीन कल तमाशा तेरे साथ भी हो सकता है।

क्यों पड़ूं मैं इन झमेलों में,इस सोच से तुझे उभरना होगा,

कुछ तो करना होगा ।

 

मूकदर्शक बनकर क्या पा लिया तुमने ?

कब तक चुप रहोगे तुम ?

हो गई है इंतहां दर्द की, कब तक सहते रहोगे तुम?

समय आ गया है अब इस दर्द को बिखरना होगा,

कुछ तो करना होगा।

 

दर्द तो तुम्हें भी होता होगा जुल्म होते देख कर,

व्याकुल होती होगी आत्मा भी तेरी, दूसरों को रोते देख कर।

फिर क्यों उठाता नहीं आवाज तू ,इंसानियत को सोते देख कर।

डरता है तू किस बात से,एक दिन तो सबको मरना होगा,

कुछ तो करना होगा।

 

चल पड़ा है जमाना गलत राह पर, किसी को फर्क नहीं पड़ता किसी की आह पर,

हम से ही बना है यह जमाना ,

इसे बदलने के लिए बस खुद को बदलना होगा ,

सुधर जाएगा यह जमाना भी, बस खुद सुधरना होगा।

काफी जी लिए डर डर के, अब दुश्मनों को डरना होगा।

कुछ तो करना होगा होगा।

 

बोलते तो अक्सर सभी हैं,

अब कथनी से करनी तक बढ़ना होगा।

कुछ तो करना होगा।

 

कहीं समझ ना ले नपुंसकता दुश्मन तुम्हारी शांति को,

उठा लो हथियार साथियों, अब तो लड़ना होगा।

कुछ तो करना होगा।

-राजेंद्र कुमार

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