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कविता – जहां हम रहते हैं

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जहां हम रहते हैं

जहां हम रहते हैं
वहां हमारे पड़ोस में बहती है नदी
बच्चों की तरह चंचल
हड़बड़ी में मैदानों की ओर
भागती हुई

पड़ोस में जंगल है
देवदार के पेड़ों से भरा हुआ
हमारे लिये किसी सगे सा
इस जंगल को कटने से बचाने के लिए
चिपक गईं थी पेड़ों से हमारे इस जनपद
की औरतें
दूर दूर तक गई थी
इस आंदोलन की गूंज

ग्रीष्म में इस जंगल की नमी में
पैदा होता है
खूब लिंगड़

कभी कभार
पड़ोस के शहर में भी
बेच आती हैं औरतें लिंगड़
और कमा लेती हैं इतना भर पैसा
की खरीद सकें नमक
गुड़ और बीड़ियाँ
त्यौहार जैसा दिन होता
वो उनके लिए

हमारे बच्चे अधिकतर
फौज में जाते हैं
या उठाते है शहरों मे बोझा
कभी कभार कोई चला लेता है टैक्सी
किसी बडे शहर में
इसके इलावा है भी क्या रोजगार है भला
पहाड़ी गांव के बच्चों के लिए

यहां दूर है पानी के सत्रोत
रास्ते बहुत ही कठिन
यही कारण है जो भी हमारा
बच्चा शहर की ओर गया
उसका लौटना मुशिकल

कारगिल में हमारे ही
बच्चे भेजे गये थे युद्ध मे
वे ही झेल सकते थे
ऊंचे पहाड़ों की हवा का दवाब
वे ही हुए शहीद

पिछले यद्ध के बाद
पहाड के हर गाँव को
शहीदों का गांव कह गए थे
रक्षा मंत्री

आजकल यहां के
लगभग सभी गांव
बूढ़ों विधवाओं औऱ
छोटे छोटे बच्चों के गांव है

ये देश के सबसे उदास गांव है

यहां के खेत कभी खूब उर्वर थे
आजकल बन्जर है यहां

औरतों यहां
हंसती है
रोने की तरह
घुट घुट कर करती
रहती है विलाप

यह विलाप
सगा है पहाड़ का

सुरेश सेन निशान्त
गांव सलाह, डाकघर सुन्दर नगर 1
जिला मण्डी, हिमाचल प्रदेश पिन 175018

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