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चूड़धार-शिरगुल महाराज की तपोस्थली

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सिरमौर और शिमला जिला के बिल्कुल मध्य भाग में स्थित शिरगुल महाराज की तपोस्थली “चूड़धार” या “चूड़ चांदनी” बेहद खूबसूरत और रमणीय स्थल है। यह स्थल वर्तमान परिदृश्य में लोगो द्वारा गमन किया जाने वाले प्रमुख स्थानों में से पसन्दीदा बन कर उभरा है जो कि समुद्र तल से 3649 मीटर की ऊंचाई पर अवस्थित है। शिरगुल देवता यहाँ के प्रमुख देवता है। इस स्थल को लेकर शिरगुल देवता से सम्बंधित कई तरह की किवंदन्तिया और लोक गाथाएं प्रचलित है।
यह मान्यता है कि शिरगुल देवता अलौकिक शक्तियों के कारण मानव से देवता बना था। शाया गांव के भोखरू नामक मुखिया निःसंतान होने के कारण अपना राजपाठ छोड़ कर कश्मीर चला गया। जहाँ पर शिव की स्तुति की और वापिस आने पर उसे वरदान स्वरूप दो पुत्र शिरगुल और चंदेश्वर हुए।
मां बाप की मृत्यु होने पर शिरगुल हरिद्वार गया जहाँ पर उसकी मुलाकात चुहडू नामक शिवभक्त से हुई। दोनों में मित्रता हुई और वे दोनों चूड़धार में रहकर तपस्या करने लगे। कुछ समय के पश्चात शिरगुल किसी दैविक आह्वाहन पर दिल्ली चला गया। वहाँ उसका दिल गाय पर हो रहे अत्याचार को देखकर पसीज गया और गाय पर अत्याचार करने वाले व्यक्तियों का अकेले ही वध कर दिया। चूंकि गाय काटने वाला यही आदेश मुस्लिम बादशाह का था,जब शिरगुल के ऐसे दुस्साहस को देखा तो बादशाह ने उसे कैद करने के आदेश दिए लेकिन उसके सेनापति उसे कैद करने में असमर्थ रहे। बादशाह को स्वप्न में अंदेशा हुआ कि ये कोई दैविक शक्ति है तत्पश्चात वह शिरगुल के पैरों में गिर पड़ा। कुछ समय बाद शिरगुल महाराज की खबर हुई की चूड़धार पर दैत्य गाय का मांस फेंककर स्थल को अपवित्र करने का प्रयत्न कर रहे है। शिरगुल महाराज ने तुरंत अपनी शक्ति से उड़ने वाला “घोडा” पैदा किया और सभी दैत्यों को पत्थर बना दिया। दैत्यों का राजा अभी भी “ओरोपोटली” नाम के पत्थर से अभी भी चोटी से निचले हिस्से में देखा जा सकता है। शिरगुल महाराज ने देवत्व को प्राप्त करने के पश्चात चुहड़ू के लिए रहने का स्थान चुना और उसे अपना वजीर बनाया। शाया के देवी राम तथा उसके पुत्रो ने वहाँ मंदिर का निर्माण किया तथा मंदिरों में शिरगुल देवता और चुहड़ू की मूर्तियां को स्थापित किया ।
1990 के दशक में परम् पूज्य महात्मा श्री श्यामानंद जी महाराज ने इस स्थल जो ख्याति दिलाने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 12 वर्ष की कठिन तपस्या के पश्चात उन्हें सिद्धि प्राप्त हुई और तत्पश्चात उन्होंने यहाँ पर देवी भागवत का आयोजन किया। उसके पश्चात् यहाँ पर कई बार इस तरह के आयोजन किये जाते रहे और शिरगुल महाराज की महिमा का गुणगान होता रहा। 25 दिसम्बर 2005 को वे स्वर्ग सिधार गये। उनके दो प्रिय शिष्य अब चूड़चांदनी की अनुपम सौन्दर्यता से जनमानस में धर्म का प्रचार कर रहे है।

@…स्पर्श चौहान

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