समाज के हर स्थान में,
हर ऐश में आराम में,
हर अच्छे बड़े काम में,
मंदिरों के अनुष्ठान में,
हर नृत्य में हर गान में,
कुएं में, तालाब में, पानी के हर स्थान में,
अच्छे परिधान में, सामाजिक खानपान...
रेंगने से भागने तक
जीते नहीं थे,काटते थे जिंदगी |
घिसटते थे,खिसकते थे,रेंगते थे |
ऐसा न था कि सभी रेंगते ही थे |
देखने में थे हू ब हू ही,
पर कुछ खड़े होते, चलते और दौड़ते भी थे |
पर कभी सोचा ही...
नफ़रत के बीज
शहरों से दूर,
आधुनिकता से परे,
भौतिकता के पार,
दूर सुदूर क्षेत्र में प्रकृति की गोद में बसा एक गाँव।
गांव के लोगों का अपना ही था काम।
खेती-बाड़ी और पशुओं को चरा लेते थे।
खुशी से जीवन...