कविता- दर्द मिटा दूँगा
तेरे दर्द को अल्फ़ाज़ दूंगा,
मत सोच तू अकेला हैं
हर कदम पर तेरा साथ दूंगा।
दर्द का समुंदर जो तेरे अंदर,
नित्य रफ़्ता रफ़्ता बहता है
उसको भी एक दिन किनारा दूंगा।
जिस ख़ामोशी में समा रखा है
छट पटाता तूने दर्द...
भोग विलासी, अत्याचारी,
चाहे राजा हो दुर्व्यव्हारी।
यशोगीत वो गाते थे,
दिन को कह दे रात अगर वो ,
तो रात ही बताते थे।
ये तो उनका काम था,
इसी से चुल्हा जलता था।
क्यों ना करते जी हज़ूरी,
परिवार इसी से पलता था।
उनके तो कई कारण...
1. दर्द
दर्द को समझने के लिए
पहले मैंने बाजू में चीरा लगाया,
फिर भी मुझे,
वह दर्द महसूस नहीं हुआ।
फिर मैंने ज़ख्म में
नमक मिला लिया,
पर फिर भी मुझे,
उतना दर्द नहीं हुआ।
मैं समझ नहीं पा रहा था
आखिर क्यों...
वह दर्द खुद को यातना देने...
हो तपती गर्मी या हो सर्दी,
उगाई फ़सलें तूने सदियों, हर मौसम की मार में।
तू कौन है?
जो आ खड़ा है, महल के द्वार में ।
चुप ही था तु तो सदा,
सर झुका रहता था तेरा, हर दुख में हर हार में।
ऊँचा...
जहां हम रहते हैं
जहां हम रहते हैं
वहां हमारे पड़ोस में बहती है नदी
बच्चों की तरह चंचल
हड़बड़ी में मैदानों की ओर
भागती हुई
पड़ोस में जंगल है
देवदार के पेड़ों से भरा हुआ
हमारे लिये किसी सगे सा
इस जंगल को कटने से बचाने के...
अलविदा मानसून
तुम इस बार कुछ उखड़े उखड़े से रहे! महज़ एक दो बार ही जम कर बरस सके, बाकी सिर्फ आसमान से ही ताकते रहे और हँसते रहे इंसानों के जंगल राज पर! जो रात दिन लगा हुआ है...
कविता - बहते हुए तूफ़ान
बहते हुए तूफान में
मैं भी बहता रहा,
कभी तूफान बन कर
कभी दरिया की नाव बनकर।
लोग सोचते रहे,
मैं डूब गया।
किसी गुमनाम तैराक की तरह।
पर स्थिर रहा मैं,
किसी अडिंग चट्टान की तरह।
टकराता रहा मैं भी,
तूफानी दरिया के
पानी की...
चेयरमैन साहब कुछ दिनों से परेशान चल रहे थे, उनकी समझ में नहीं आ रहा था की फेसबुक में उन्होंने 5000 दोस्त बना रखे हैं और क्यों नहीं बन रहे? चाहते तो साहब 5 लाख बनाना पर कमबख्त जकरबर्ग...
कविता - क्या तब?
तप्त अग्नि में जलकर
राख हो जाऊंगा।
एक दिन मिट्टी में मिलकर
खाक हो जाऊंगा।
तब मिट्टी को रौंदकर
क्या मुझे याद करोगे?
झूठे ख्वाबों की शायरी से
क्या मेरा इंतजार करोगे?
करना है इश्क़ तो
अब कर सनम।
लगा सीने से तस्वीर को
क्या तब याद...
कविता- गुलाम आज़ादी
मुबारक हो,
मुबारक हो
आज़ाद हिंद के
गुलाम नागरिकों को
आज़ादी मुबारक हो।
गुलाम हो,
गुलाम हो
आज भी तुम
अपने कामुक विचारों के
गुलाम हो।
शिकार हो,
शिकार हो
आज भी तुम
गली चौराहों में
घूमती फिरती
अपनी गंदी नज़र
का शिकार हो।
बेहाल हो,
बेहाल हो
आज भी तुम
जाति बंधन के
कटु नियमों से
बेहाल हो।
गुलाम...