Saturday, April 20, 2024
हिंदी हिंद की शान है, बिंदी जिसकी पहचान है। हिंदी जननी है मातृभाषा अभिमान है, जिस पर हमे आता। फूल पत्तों जैसी ये खिलती। हर भाषा में जा, ये गुल मिलती। स्वर व्यंजन जिसकी पहचान है। संयुक्त वर्ण जिसकी शान हैं। अर्ध अक्षर भी जिसका देता भाषा में, एक नई जान है। हिंदी हिंद की...
अलविदा मानसून तुम इस बार कुछ उखड़े उखड़े से रहे! महज़ एक दो बार ही जम कर बरस सके, बाकी सिर्फ आसमान से ही ताकते रहे और हँसते रहे इंसानों के जंगल राज पर! जो रात दिन लगा हुआ है...
कविता - बहते हुए तूफ़ान बहते हुए तूफान में मैं भी बहता रहा, कभी तूफान बन कर कभी दरिया की नाव बनकर। लोग सोचते रहे, मैं डूब गया। किसी गुमनाम तैराक की तरह। पर स्थिर रहा मैं, किसी अडिंग चट्टान की तरह। टकराता रहा मैं भी, तूफानी दरिया के पानी की...
बाल कविता - कुमारी संजना की कविता गुरु हमें शिक्षा सिखाते, जिदंगी मे आगे बढ़ने  की राह दिखाते। गुरु हमें संस्कार सिखाते, अच्छे कर्मों को करने की राह दिखाते। गुरु हमे सच बोलना सिखाते, झूठ न बोलने की राह दिखाते। गुरु हमें देश मे ऊँचा...
कविता - क्या तब? तप्त अग्नि में जलकर राख हो जाऊंगा। एक दिन मिट्टी में मिलकर खाक हो जाऊंगा। तब मिट्टी को रौंदकर क्या मुझे  याद करोगे? झूठे ख्वाबों की शायरी से क्या मेरा इंतजार करोगे? करना है इश्क़ तो अब कर सनम। लगा सीने से तस्वीर को क्या तब याद...
कविता- गुलाम आज़ादी मुबारक हो, मुबारक हो आज़ाद हिंद के गुलाम नागरिकों को आज़ादी मुबारक हो। गुलाम हो, गुलाम हो आज भी तुम अपने कामुक विचारों के गुलाम हो। शिकार हो, शिकार हो आज भी तुम गली चौराहों में घूमती फिरती अपनी गंदी नज़र का शिकार हो। बेहाल हो, बेहाल हो आज भी तुम जाति बंधन के कटु नियमों से बेहाल हो। गुलाम...
समाज के हर स्थान में, हर ऐश में आराम में, हर अच्छे बड़े काम में, मंदिरों के अनुष्ठान में,  हर नृत्य में हर गान में,  कुएं में, तालाब में, पानी के हर स्थान में,  अच्छे परिधान में, सामाजिक खानपान...
आलेख - दूषित राजनीति दूषित लोग आज हम भारत की राजनीति की बात करें तो वह पूरी तरह दूषित हो चुकी है।इसके लिए हम किस को जिम्मेवार ठहरा है।कुछ समझ नहीं आता मगर वास्तव में हम विचार करें तो दूषित...
कविता- दर्द मिटा दूँगा तेरे दर्द को अल्फ़ाज़ दूंगा, मत सोच तू अकेला हैं हर कदम पर तेरा साथ दूंगा। दर्द का समुंदर जो तेरे अंदर, नित्य रफ़्ता रफ़्ता बहता है उसको भी एक दिन किनारा दूंगा। जिस ख़ामोशी में समा रखा है छट पटाता तूने दर्द...
कविता - नन्ही परी हर रोज की तरह आज भी हुई सुबह आज था कुछ अलग होना इसका था ना मुझे पता घर से स्कूल, स्कूल से घर, यही थी मेरी राह यहीं कुछ ऐसा हुआ जिससे बदल गया जीवन सारा।। क्या थी गलती...
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