हिमरी गंगा II डायना पार्क IIस्वर्णिम वाटिका बासाधार

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हिमरी गंगा / डायना पार्क /स्वर्णिम वाटिका बासाधार

भारत एक लोकतांत्रिक देश है,इसलिए यहां समय-समय पर लोकतंत्र का सबसे बड़ा महापर्व यानी चुनाव होते रहते हैं। चुनाव को सफल बनाने के लिए सरकारी कर्मचारी बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सरकारी कर्मचारी होने के नाते मैं भी कई दफा इलेक्शन ड्यूटी दे चुका हूं। इस बार मंडी संसदीय क्षेत्र के उपचुनाव की इलेक्शन ड्यूटी के दौरान मेरी इलेक्शन रीहर्सल पधर में हुई।
इलेक्शन रिहर्सल के बाद मेरे मित्र योगेंद्र ने कहा कि क्यों ना हम मंडी वापसी हिमरी गंगा तथा डायना पार्क होते हुए करें। मुझे यह सुझाव अच्छा लगा।और हम दोनों निकल पड़े पधर से मंडी के इस नये सफर पे। पधर से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है हिमरी गंगा । हिमरी गंगा तक गाड़ी द्वारा 15 से 20 मिनट में आसानी से पहुँचा जा सकता है। सड़क की हालत ठीक है।
सीयून पंचायत में सड़क किनारे हिमरी गंगा के लिए एक भव्य द्वार है। कुछ मिनट के पैदल सफर के बाद हम एक विशालकाय वृक्ष के नीचे स्थित पवित्र स्थल हिमरी गंगा पहुंच गये। हिमरी गंगा हरे भरे पेड़ों से घिरा एक प्राकृतिक जल स्त्रोत है।यह बहुत ही सुंदर,मनमोहक, एकांत और शांत जगह है। जहां पर पहुंचकर आपके मन को शांति का अहसास होता है। हिमरी गंगा एक पवित्र स्थान है जहां दूर-दूर से लोग स्नान करने आते हैं । मान्यता है कि यहां दामन फैलाकर मांगी गई हर मन्नत पूरी हो जाती है। मिनी कुंभ के नाम से प्रसिद्ध एक दिवसीय मेले में यहां निसंतान दंपतियों तथा अन्य श्रद्धालुओं का दिन भर तांता लगा रहता है। यह स्थान निसंतान महिलाओं के लिए भी विशेष महत्व रखता है। नि:संतान महिलाएं पानी के स्त्रोत में अखरोट फैंकती हैं और नीचे की तरफ अपने दुपट्टे को लेकर खड़ी हो जाती हैं। ऐसी मान्यता है कि भाग्य से जिस महिला के पास अखरोट आकर गिरता है उसे संतान प्राप्ति होती है।
लोक कथाओं के अनुसार देवता हुरंग नारायण बाल रूप में सनेड गांव की एक वृद्ध महिला के घर ग्वाले का काम करते थे। गांव के अन्य बालकों के साथ में गायों को घोघड़धार चराने के लिए ले जाते थे। सभी बालक गायों को पानी पिलाने के लिए उहल खड्ड ले जाते थे। लेकिन हुरंग नारायण एक विशालकाय पेड़ के नीचे अपनी छड़ी चुभाते और वहां से पानी की धारा निकल जाती और वे गायों को वहां पानी पिलाते थे। जब अन्य बालकों ने यह देखा कि हुरंग नारायण उहल खड्ड में अपनी गायों को लेकर पानी पिलाने नहीं लाते तो उन्होंने वृद्ध महिला से हुरंग नारायण की शिकायत कर दी। जिससे वृद्ध महिला को बहुत गुस्सा आया और गुस्से में उन्होंने हुरंग नारायण को घर से निकाल दिया। अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए हुरंग नारायण वृद्ध महिला को उस पेड़ के नीचे ले गए और जैसे ही उन्होंने वहाँ छड़ी चुभाई वहां से पानी की धारा निकल गई। पानी की धारा निकलते ही हुरंग नारायण वहां से अचानक गायब हो गए । यही पानी की धारा आज भी उसी स्थान पर प्रवाहित होती है और इसे हम हिमरी गंगा के नाम से जानते हैं।

हिमरी गंगा के खूबसूरती,शांति, और मनमोहक प्राकृतिक दृश्यों को दिल में संजोये हम अपने अगले गंतव्य की ओर बढ़ चले। हिमरी गंगा से लगभग 3km की दूरी पर स्थित है घोघड़धार में स्थित डायना पार्क। सड़क पे थोड़े गढे देखने को मिल जायेंगे। आसपास मक्की के लहलहाते खेत। हालांकि मंडी के अन्य इलाकों में एक महीने पहले ही मक्की की फसल काट दी गई है, लेकिन यहाँ अभी भी फसल खेतों की शोभा बढ़ा रही है।यहाँ से बहुत नीचे गहराई में बह रही है उहल खड्ड और सामने आसमाँ को चूम रही हैं हाथीपुर की पहाड़ियाँ। नज़ारा इतना खूबसूरत की शब्दों में बयाँ ना हो सके। सड़क दो हिस्सों में बँट जाती है एक मंडी और दूसरी झटिंगरी बरोट की ओर। अब बात कर लेते हैं यहाँ से जुड़ी धार्मिक मान्यता की।

मान्यता है कि घोघड़धार में देवों और डायनों के मध्य युद्ध होता है. यहाँ युद्ध का स्थान भी चिन्हित है, युद्ध के समय कोई भी उस स्थान में नहीं जाता है. किवदंती के अनुसार भादों का महीने को काला महीना भी कहा जाता है. इस माह के दौरान देवता युद्ध में चले जाते हैं तथा जादू टोना हावी हो जाता है.घोघर धार में चल रहे युद्ध का परिणाम नवरात्रों में देवी देवताओं के गुर या पुजारी बताते हैं अगर देवताओं की जीत हो तो सारा साल सुखमय रहता है तथा अगर बुरी शक्तियाँ जीते तो आने वाले साल में आपदा आती है. मंदिरों में रात भर होम का आयोजन होता है तथा पुजारी अंगारों पर खेलकर भक्तों पर आई बला को टालते हैं।
इस मान्यता पर आप कितना विश्वास करते हैं ये आप पर छोड़कर हम आगे बढ़ते हैं।

हमारी अगली मंज़िल है बसाधार स्थित स्वर्णिम वाटिका। यह घोघड़धार से लगभग 13km की दूरी पर है। सड़क के हाल बहुत ही खराब, लेकिन आसपास के खूबसूरत नज़ारे खराब सड़क की परेशानी को नज़रंदाज़ करने में आपका शत प्रतिशत सहयोग देते हैं। हरे भरे खेत, मवेशी चराते ग्रामीण, बान तथा चीड़ के वृक्ष और भी कई खूबसूरत नज़ारे हमारे सफ़र के गवाह बने। कहीं कहीं सड़क पक्की हो रही है,हो सकता है अगली दफा सड़क परेशानी का कारण ना बने।लगभग पौने घंटे के सफ़र के बाद हम स्वर्णिम वाटिका बसाधार में थे। चीड़ के वृक्षों के मध्य फूल की क्यारियाँ, बैठने के लिए बेंच, एक शेड
वाली छोटी सी वाटिका। एकांत प्रिय लोगों के लिए एकदम सटीक जगह।
कुछ समय के भ्रमण के पश्चात हम कटिण्डी होते हुए मंडी को निकल गए।

एक छोटा सफर लेकिन बहुत से खूबसूरत अनुभव।
आप भी समय निकलिए, बिताइये कुछ समय प्रकृति के आँचल में ।
धन्यवाद।
-superRk

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