Home हिमाचली साहित्य वापिस (कविता) हिमाचली साहित्य वापिस (कविता) By super_RK - October 7, 2018 1147 0 FacebookTwitterPinterestWhatsApp जब गुजरता हूं खुद किसी भयावह स्थिति से, तो सोचता हूं अक्सर उसकी वजह मैं। चाहता हूं मिटा दूं उस वजह को ही, पर लौट आता हूं अक्सर उसी जगह मैं। गुजरा हूं सिर्फ एक साधारण स्थिति से ही, परिस्थितियां इससे भी भयावह होती हैं। कैसे सहते होंगे लोग दर्द उन परिस्थितियों का, जिन की दस्तक मात्र से दिल में दहशत होती है। डूबता चला जाता हूं विचारों के भंवर में इस तरह मैं, पर लौट आता हूं अक्सर उसी जगह मैं। कुछ बातें बदलने को, एक बड़ा कदम उठाना पड़ता है । समाज में परिवर्तन लाने को, तथाकथित समाज से टकराना पड़ता है । सोच समाज से खिलाफत की बातों को, जाता हूं अक्सर सहम मैं, विचारों से निकल कर, लौट आता हूं अक्सर उसी जगह मैं। जानता हूं लौट आना विचारों से “वापस उसी जगह” रास्ता बड़ा आसान है, पर यह भी जानता हूं कि यह मेरी कमजोरी की पहचान है। कभी बढूंगा मैं आगे समाज की कुरीतियों के खिलाफ, फिर हो जाऊंगा सजग मैं। नहीं लौटूंगा फिर “वापिस उसी जगह” मैं….वापिस उसी जगह मैं। – राजेंद्र कुमार RELATED ARTICLESMORE FROM AUTHOR रेंगने से भागने तक नफ़रत के बीज (कविता) सही गलत (कविता) 102FansLike3FollowersFollow - Advertisement - Recent Posts कविता – नए प्रतिबिम्ब Balwant Neeb - September 10, 2018 2 खुशबू (छात्रा) की कविता – हिंदी हिम वाणी - September 13, 2019 0 यादें (कविता) super_RK - December 6, 2018 0 कविता – जहां हम रहते हैं Suresh Sen Nishant - August 23, 2018 0 किन्नौर डायरी – बहुपति प्रथा super_RK - August 17, 2018 0