हिमाचली साहित्य सही गलत (कविता) By super_RK - January 26, 2021 2 1252 Facebook Twitter Pinterest WhatsApp सही गलत किसी बात से व्यथित मन, व्यथित मन ने लिया ठान, क्या सही है क्या है गलत? अब तो वह यह लेगा जान। विचारों के विमान संग, उड़ता फिर रहा था मन। फिर दृश्य एक देखकर, मन गया वही पर थम । ठीक उसी स्थान पर, खत्म हो गई थी जंग। यही तो वह स्थान है, जहां सभी सामान है, जो करें व्यथा खत्म, कि क्या सही है क्या गलत? मन गया वहीं ठहर, बीते पल बीते पहर। भटका मन पूरे शहर। क्षित विक्षित लाशें थी, लोगों का विलाप था। हार की निराशा थी, दुख था, संताप था । रेंगते शरीर थे, भयावह रक्तपात था। घायलों की आह थी, निकट मृत्यु देखकर, निकली करुण कराह थी । अश्रुपूर्ण नेत्रों में, ज़िंदगी की चाह थी। पर मंज़िल अब मृत्यु थी, ना अन्य कोई राह थी । मिट गया सिंदूर था, स्त्रियों की करुण पुकार थी, सन्नाटा चिरती चीत्कार थी। दूधमुंहे बच्चे साथ थे, अब से वो अनाथ थे । जो शहर बड़ी हस्ती थी, अब केवल उजड़ी बस्ती थी। आंसू थे, उदासी थी, घनघोर,स्याह खामोशी थी। कुछ झुर्रीदार चेहरे थे, चेहरे में जख्म गहरे थे, जो मौत से कुछ कह रहे थे, बहुत हुआ अब इंतजार, अब ले हमें भी आगोश में, अब रहना नहीं होश में। भूखे गिद्ध टूट पड़े, उनको भी कुछ खाना था, अपना अस्तित्व बचाना था । व्यथित मन और व्यथित हुआ, उसने अब यह जान लिया, युद्ध “गलत” है, मान लिया। पर मन तो तो मन है, कब रुका है? फिर से मन भटक गया, थोड़ा आगे निकल गया। आगे एक स्थान था, जो जश्न को तैयार था। जगमगाता महल था, खुशियों का त्योहार था। पूरी की पूरी नगरी, पुष्पों से सजाई थी, बाजे थे नृत्य था, हर तरफ बधाई थी। आनंद था, हर्ष था, बंट रही मिठाई मिठाई थी। हर गली, हर घर में, अनोखी खुशी छाई थी । बच्चे बूढ़े प्रसन्न थे, सिंदूर फिर से चमका था। बेटों की विजय पर माँएं भी हर्षायी थी । राज्य ये वही था, युद्ध में जीत जिसने पाई थी । मन की व्यथा अब कम थी, देख के उल्लास ये, मन ने ये जान लिया, युद्ध तो “सही” है, मन ने ये मान लिया । पर कैसे? परिणाम भले दो हों, युद्ध तो वही है । बात तो एक थी, कहीं गलत,कहीं सही है । मन सब समझ गया, किसी की जीत, किसी की हार भी तो है। कहीं है दुःख, तो कहीं त्यौहार भी तो है। शिकार की जान, शिकारी का आहार भी तो है। किसी की पीड़ा कोई ना जाने, जिस तन लागे, वो तन जाने। क्या सही है क्या गलत है? कौन जाने? जो सही किसी के लिए, कोई और उसको गलत माने। सही या गलत, ये तो एक तमाशा है । क्या सही क्या गलत, सबकी अलग परिभाषा है । –super RK
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