1. इक लौ अभी तक ज़िंदा है
अभी कोई नहीं है ख़ुशी यहाँ,
बंजर खेत है,उजाड़ बस्ती है।
इक लौ अभी ज़िंदा है
जो इक निग़ाह को तरसती है।
इक ख़ौफ़ सा अंदर बाकी है
इक आंख रात दिन जगती है,
खौफ़जदा है वो हर इक आहट पे,
के यह आहट वही हो सकती है।
न जाने क्या मंज़र गुज़रा है
के हर आंख पे शबनम छाई है
न जाने क्यों चेहरे है डरे-डरे
जाने क्यों हंसी घबराई घबराई है।
जो सारे सपनों को तोड़ गया
वो वक्त गुजर जाता है
फिर क्यों नहीं हंसी-ख़ुशी
फिर क्यों सन्नाटा चिल्लाता है।
जो बीत गया है भला-बुरा
उसे सच में तुम्हें गुज़ारना होगा
वो खौफनाक मंज़र था तेरा कल
तुझे आज उसको नकारना होगा।
जीना होगा तेरे आज में तुझको
और अपना कल सवारना होगा।
तू नई मंज़िलों के ख्वाब देख
जो उजड़ गई उन्हें भूल जा
तू नई राहों की नाप दिशा
जो भटक गई उन्हें भूल जा।
नई मंज़िलों की राह में
उन्हें पा जाने की चाह में
गर अँधेरा तुझे डरने लगे
तेरी राह से तुझे भटकाने लगे।
तू न उससे डर के बैठना
तेरा हौंसला अभी जिन्दा है,
होगा खत्म जिससे अँधेरा
यह इक लौ अभी तक जिन्दा है
यह इक लौ अभी तक जिन्दा है।
2. एक अधूरा सपना
आज काफी अरसे बाद लौटा हूँ ,
मैं तुम्हारी यादों के गलियारों में ।
जिस जगह पे हम तुम मिलते थे,
उस जगह मैं पहरों बैठा रहा तन्हा आज ।
कितनी प्यारी जगह हुआ करती थी वो
हमारी चाहतों के सपने पला करते थे जहाँ
मेरी छोटी छोटी बातों का
कितना ख्याल रखा करती थी तुम।
हम अक्सर मिला करते थे वहाँ
और तुम अक्सर दुआ माँगा करती थी
हमारे प्यार की लम्बी उम्र की।
मगर वो कोई दुआ कुबूल न हुई
और जुदा कर दिया हालात ने तुमको मुझसे।
वो सारी दुआएं नाकाम क्यों हुईं?
यह सवाल अब भी खड़ा है उस जगह पे
और बिखरे पड़े हैं वो सारे सपने,
जो देखे थे हमने साथ अपनी चाहतों के
तुम्हारा ख्याल अब भी बसता है वहाँ
अभी भी वो दुआएं ,जो की थीं तुमने
हमारे प्यार की खातिर ,
सिसक रही हैं , मर जाने को आतुर हैं।
वो सपने , वो ख्याल , वो दुआएं ,वो प्यार
पहरों बैठे रहे मेरे पास।
और मैं उनको सीने से लगाए
रोता रहा बस रोता रहा।
– शाम अजनबी
गांव व डाकघर बलेरा
तहसील डलहौजी जिला चम्बा (हिमाचल प्रदेश)